प्राकृतिक वनस्पति

प्राकृतिक वनस्पति Download

  • भारत में वन वर्षा का अनुसरण करते हैं | भारत में अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वर्षा वनपाये जाते हैं |
  • विषुवत् रेखा के आस-पास के क्षेत्रों में वर्षा वर्षभर होती है,यही कारण है, कि इन क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वन पाये जाते हैं |
  • उष्णकटिबंधीय वन कोविषुवतीय वन या सदाबहार वनभी कहते हैं |
प्राकृतिक वनस्पति
प्राकृतिक वनस्पति
  • भारत में शिलांग पठार के आस-पास का क्षेत्र तथा पश्चिमी घाट का क्षेत्र अधिक वर्षा वाला क्षेत्र है |
  • अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वन पाये जाते हैं | इन्हें सदाबहार वन भी कहते हैं | सदाबहार वन की विशेषता होती है, कि ये वर्ष भर अपनी पत्तियाँ नहीं गिराते हैं और सदैव हरे-भरे रहते हैं |
  • सदाबहार वन घने और सघन होते हैं | इस प्रकार के वनों में सूर्य का प्रकाश धरातल तक नहीं पहुँच पाता है |
  • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कंटीली झाड़ियोंवाली वनस्पतियाँ पायी जाती हैं |उदाहरण के लिए – राजस्थान और प्रायद्वीपीय पठार के भीतरी भाग जहाँ 70 सेमी० से भी कम वार्षिकवर्षा होती है |
  • दक्षिण-पश्चिमी मानसून की अरब सागर शाखा पश्चिमी घाट पर्वत के पश्चिमी ढाल और पश्चिमी तटीय मैदान पर 200 सेमी० से भी अधिक वर्षा करती हैं | इसके चलते इन क्षेत्रों में सदाबहार वन का विकास होता है |
  • तमिलनाडु के कोरोमंडल तट पर भी वर्षा वन पाये जाते हैं, क्योंकि कोरोमंडल तट पर भी अधिक वर्षा प्राप्त होती है, हालांकि कोरोमंडल तट पर वर्षा उत्तरी-पूर्वी मानसून से प्राप्त होती है |
  • तमिलनाडु के वर्षा वन के क्षेत्र को कृषि योग्य भूमि में परिवर्तित कर दिया गया है, इसलिए वनों की जितनी सघनता पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल और पश्चिमी तटीय मैदान में दिखाई देती है | उतनी सघनता कोरोमंडल तट पर नहीं दिखाई देती है |
  • इसी प्रकार शिलांग पठार के आस-पास के क्षेत्रों में (अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर) सदाबहार वन अथवा वर्षा वन पाये जाते हैं, क्योंकि यहाँ पर भी वर्षा की मात्रा 200-250 सेमी० से अधिक होती है |
  • पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल पर तो वर्षा वन पाये जाते हैं, जबकि पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल पर, पठारी भारत के भीतरी क्षेत्रों मेंकंटीली झाड़ियों वाली वनस्पतियाँ पायी जाती हैं | यहाँ पर 70 सेमी० से कम वार्षिक वर्षा होती है |
  • पश्चिमी घाट के पूर्वी ढाल पर वृष्टि छाया प्रदेशों का विकास हुआ है | मानसूनी पवनें पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल पर तो खूब वर्षा करती हैं, लेकिन जैसे ही ये पवनें पश्चिमी घाट को पार करके पूर्व की ओर आती हैं, यहाँ वर्षा की मात्रा अचानक घट जाती है |
  • वृष्टि छाया प्रदेश में महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के क्षेत्रों में कंटीली झाड़ियों वाली वनस्पतियाँ उगती हैं |
  • वनस्पतियाँ स्वयं को पर्यावरण की दशाओं और जल की उपलब्धता के आधार पर ढाल लेती हैं | उदाहरण के लिए – अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अधिक जल की उपलब्धता है, जिसके कारण वर्षा वन अथवा सदाबहार वन वाले वनस्पतियों में चौड़े पत्ते वाले वृक्षपाये जाते हैं | ये वृक्ष अपने चौड़े पत्तियों के माध्यम से भूमिगत जल का वाष्पोत्सर्जन करते हैं और पर्यावरण में नमी की मात्रा बनाये रखते हैं |
  • कम वर्षा वाले क्षेत्रों में जैसे- पश्चिमी भारत में और पठारी भारत के भीतरी भागों में वनस्पतियों ने स्वयं को बचाने के लिए अपने पत्तियों को काँटों के रूप में परिवर्तित कर दिया है, ताकि वाष्पोत्सर्जनकम हो और वे जीवित रह सकें |
  • हिमालय के तराई क्षेत्र के नीचे उत्तर-प्रदेश से तमिलनाडु तक और मध्य-प्रदेश से लेकर झारखण्ड तक मानसूनी वर्षा होती है |
  • वर्षा मौसमी होने के चलते यहाँ के वृक्ष शीतकाल के बाद ग्रीष्म ऋतु आने के ठीक पहले पत्तों को गिरा देते हैं, क्योंकि शीत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर वायुमण्डल का तापमान बढ़ने पर उसकी सापेक्षिक आर्द्रता काफी घट जाती है|इन क्षेत्रों के वनों को पतझड़ वन, पर्णपाती वन या मानसूनी वन कहते हैं |
  • पहाड़ों में पाये जाने वाले वन वर्षा का अनुसरण नहीं करते हैं, बल्कि पर्वतीय वन ढाल का अनुसरण करते हैं, क्योंकि यहाँ ऊँचाई बढ़ने के साथ तापमान में कमी आती है |
  • यदि उष्णकटिबंधीय स्थान पर कोई पहाड़ है, तो धरातल पर उष्णकटिबंधीय वनस्पति और पहाड़ों पर ध्रुवीय वनस्पतियाँ पायी जाती हैं |उदाहरण के लिए – अफ्रीका में विषुवत् रेखा पर स्थित माउण्ट केन्या|

          Note- ऊँचाई जलवायु में परिवर्तन लाती है |

  • विषुवत् रेखा पर होने के कारणकेन्याकी जलवायु उष्णकटिबंधीय है, लेकिन माउण्ट केन्या, विषुवत् रेखा पर स्थित है, इसके बावजूद उसके शिखर पर ग्लेशियर पाया जाता है |
  • यही कारण है, कि हिमालय के निचले सिरे पर सदाबहारी वन, कुछ और ऊँचाई बढ़ने पर शीतोष्ण वन तथा कुछ और ऊँचाई बढ़ने पर कोणधारी वन और अधिक ऊँचाई बढ़ने पर टुण्ड्रा वनस्पति या अल्पाइन वन पाये जाते हैं |

          टुण्ड्रा वनों में तीन तरह की वनस्पतियाँ पायी जाती हैं –

(i)     काई

(ii)    घास

(iii)   लाइकेन

अंडमान तथा निकोबार द्वीप समूह पर वर्ष भर वर्षा होती है, जिसके कारण यहां 75% भू-भाग पर वर्षा वन पाये जाते हैं |

Leave a Message

Registration isn't required.


By commenting you accept the Privacy Policy

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Usernicename
प्राकृतिक वनस्पति से सम्बन्धित प्रश्न | vanaspati se sambandhit prashn
July 5, 2023, 7:29 pm

[…] से सम्बन्धित प्रश्न उत्तर | prakritik vanaspati, prakritik vanaspati se sambandhit prashn uttar पसंद आई हो […]

Usernicename
Umesh Kumar
June 22, 2023, 9:01 pm

VR Very good

Usernicename
K. K. Verma
May 11, 2020, 5:49 pm

Very well understood

Usernicename
ARVIND PAL
April 12, 2020, 7:44 am

sir RO ARO 2016 re exam ka batch start karo aap abhi samay mil gya hi