इलाहबाद की संधि
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- प्लासी का युद्ध अंग्रेजों के षड्यंत्र का परिणाम था जबकि बक्सर का युद्ध अंग्रेजों की सैन्य नीतियों का परिणाम था|बक्सर के युद्ध ने बंगाल पर अंग्रेजों के वैधानिक अधिकारों की पुष्टि कर दी थी, क्योंकि अंग्रेजों ने इसे अपने सैन्य पराक्रम से जीता था|इस युद्ध में अंग्रेजों ने भारत के तीन-तीन राजाओं की संयुक्त सेना को पराजित किया था|
- बक्सर के युद्ध के बाद बंगाल में द्वैध शासन की शुरुआत हुई|वास्तव में द्वैध शासन के माध्यम से भी बंगाल को लूटा गया|द्वैध शासन का प्रारम्भ लॉर्ड क्लाइव ने की थी|द्वैध शासन,1765 ई०से लेकर 1772 ई०तक के कालमें चला था|
- मुगल प्रान्तों में दो प्रकार के अधिकारी होते थे –
- सूबेदार
- दीवान
- मुगल काल में सूबेदार का कार्य, राज्य में कानून व्यवस्था और सैन्य व्यवस्था की देख-रेख करना था जबकि दीवान मुख्य रूप से राजस्व की वसूली तथा वित्त व्यवस्था की देख-रेख करता था|ये दोनों अधिकारी मुगल बादशाह के प्रति उत्तरदायी होते थे|इसके साथ ही ये एक दूसरे पर भी नियंत्रण का कार्य करते थे|इस व्यवस्था के कारण प्रान्तों में विद्रोह की समस्या उत्पन्न नही हो पाती थी|
- औरंगजेब के काल में मुर्शिद कुली खां ने मुगलों से बंगाल को पूरी तरह से आजाद कर लिया था|यद्यपि कीमुर्शिद कुली खां ने कभी भी स्वयं को बंगाल के स्वतंत्र शासक के रूप में घोषित नही किया था किन्तु वह बंगाल पर एक शासक के तौर पर नियंत्रण बनाये हुए था|
- बक्सर के युद्ध में अंग्रेजों ने मुगल बादशाह को भी पराजित किया था|मुगल बादशाह को पराजित करने के बाद अंग्रेजों ने 12 अगस्त, 1765 ई० को मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय के साथ इलाहाबाद की प्रथम संधि की थी|
- इलाहाबाद की संधि हेतु क्लाइव को दूसरी बार भारत का गवर्नर बनाकर भेजा गया| यह संधि दो चरणों में संपन्न हुई थी –
- इलाहाबाद की प्रथम संधि (12 अगस्त,1765)
- इलाहाबाद की द्वितीय संधि (16अगस्त, 1765)
- 12 अगस्त, 1765 ई० इलाहाबाद की प्रथम संधि की मुख्य शर्तें इस प्रकार थीं–
- कंपनी ने मुगल बादशाह को 26 लाख रुपयेवार्षिक देना स्वीकार किया|इसके बदले में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी कंपनी को सौंप दी|
- कंपनी ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से कड़ा और इलाहबाद छीनकर मुगल बादशाह शाहआलम द्वितीय को दे दिया|
- बादशाह शाहआलम द्वितीय ने अल्पआयु नवाब नज्मुद्दौला को बंगाल का नवाब स्वीकार कर लिया|कालांतर में कंपनी ने धीरे-धीरे नज्मुद्दौलाके सारे अधिकार छीन लिए और अब नज्मुद्दौलाकेवल नाममात्र का नवाब रह गया था|
इलाहबाद की द्वितीय संधि (16 अगस्त, 1765 ई०)
- यह संधि राबर्ट क्लाइव और अवध के नवाब शुजाउद्दौला के मध्य संपन्नहुई|इस संधि के तहत-
- कंपनी द्वारा अवध की सुरक्षा हेतु नवाब के ही खर्चे पर अवध में एक अंग्रेजी सेना रखी गई|
- नवाब द्वारा कंपनी को हर्जाने के रूपमें 50 लाख रुपये दिया गया और कंपनी को अवध में कर-मुक्तव्यापार करने की छूट प्रदान की गई|
- इलाहबाद और कड़ाको छोड़कर अवध का शेष क्षेत्र नवाब को वापस कर दिया गया|
- बनारस और गाजीपुर के क्षेत्र में अंग्रेजों की संरक्षिता में जागीरदार बलवंत सिंह को अधिकार दिया गया, हालांकि यह अवध के राजा के अधीन ही माना गया|
द्वैध शासन
- बंगाल में द्वैध शासन का जन्मदाता,लॉर्ड क्लाइव था|भारत में द्वैध शासन की शुरुआत 1765 ई० को माना जाता है|इसका मूल्य तत्त्व यह था कि बंगाल में निजामत और दीवानी का वास्तविक अधिकार तो कंपनी के हांथोंमें था लेकिन उत्तरदायित्व बंगाल के नवाब का था|
- कंपनीदीवानी और निजामतभारतीयों के माध्यम से करती थी जबकि वास्तविक अधिकार कंपनी ने अपने हांथों में रखा था|इसका सीधा तात्पर्य यह था कि एक तरफतो कंपनी का उत्तरदायित्व विहीन अधिकार था जबकि दूसरी तरफनवाब का अधिकार विहीन उत्तरदायित्व था| यही द्वैध शासन का मूल तत्त्व है|
- कंपनी ने बंगाल के अल्पआयु नवाब को 53 लाख रुपये देकर बंगाल की सूबेदारी (निजामत) का अधिकार प्राप्त कर लिया|अब बंगाल में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार कंपनी को मिल गया था|इस तरह कंपनीअब बंगाल में न केवल राजस्व वसूली और वित्त का कार्य करने लगी बल्कि अब कानून व्यवस्था का कार्य भी करने लगी थी|
- द्वैध शासन लागू होने के पश्चात अब बंगाल में दीवानी और निजामत दोनोंका अधिकार कंपनी के हांथो में था|कंपनी ने निजामत (प्रशासनिक कार्यों के लिए)के लिएमोहम्मद रजा खान को नायब सूबेदार नियुक्त किया और दीवानी कार्य (राजस्व वसूली के लिए) के लिए तीन उपदीवान नियुक्त किये|ये उप दीवान थे –
- मोहम्मद रजा खान (बंगाल)
- राजा सिताब राय (बिहार)
- राय दुर्लभ (उड़ीसा)
- वास्तव में बंगाल में राजस्व वसूली औरकानून व्यवस्था दोनों कार्यों की देख-रेख अंग्रेजों द्वारा ही किया जाता था|भारतीय दीवान और सूबेदार केवल नाममात्र के शासक थे|
द्वैध शासन का परिणाम
- कंपनी ने बंगाल का निजामत अपने हांथों में तो ले लिया था किन्तु उसे कानून व्यवस्था में कोई दिलचस्पी नही थी, बल्कि उनकी नजर बंगाल में राजस्व व्यवस्थापर थी|इसका परिणाम यह हुआ कि बंगाल में कानून व्यवस्था ठप्प हो गई, चारो ओर अराजकता और भ्रष्टाचार व्याप्त हो गई|
- द्वैध शासन के दौर में कंपनी ने दस्तक का खूब दुरूपयोग किया| दस्तक के दुरूपयोग के परिणामस्वरूप एकतरफा शुल्क-मुक्त व्यापार हुआ| इसके चलते बंगालमेंव्यापार-वाणिज्य का पतन हो गया|
- बंगाल सूती और रेशमी वस्त्र उद्योग के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध था|कंपनी के डायरेक्टर्स ने भारत में कंपनी के अधिकारियों को भारत में कपड़ा उद्योग को हतोत्साहित करने और इसके साथ ही भारत सेकच्चा रेशम को निर्यात करने के लिए भारतीयों को प्रोत्साहित करने का आदेश दिया| अंग्रेजों के इस तरह के क्रियाकलापों से बंगाल का वस्त्र उद्योग समाप्त हो गया|
- किसानों ने अत्यधिक राजस्व वसूली के कारण खेती करना बंद कर दिया|कंपनीअधिक लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों से भू-राजस्व वसूली का कार्य अधिक से अधिक बोली लगाने वाले महाजनों को दे दिया, परिणामस्वरुप इन महाजनों द्वारा किसानों का भू-राजस्व वसूली के लिए अधिक से अधिक शोषण होने लगा|इस शोषण से तंग आकर किसानों ने खेती करना बंद कर दिया|
- किसानों के द्वारा खेती न किये जाने के कारण बंगाल में खाद्यान्न उत्पादन में अचानक गिरावट आ गई|बंगाल में उत्पन्न खाद्यान्न संकट के कारण 1770 ई० में बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा| इस अकाल में बंगाल में लगभग एक करोड़ आबादी भुखमरी की शिकार हो गई|उल्लेखनीय है किइस समय बंगाल का गवर्नर कर्टियस था|
- लॉर्ड कार्नवालिस ने द्वैध शासन परइंग्लैंड की संसद में टिप्पड़ी किया था कि – “मैं पूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि दुनिया में कोई भी ऐसी सभ्य सरकार नहीं रही जो इतनी भ्रष्ट, विश्वासघाती और लोभी हो, जितना भारत में कंपनी की सरकार|”
- प्रसिद्ध भारतीय इतिहासकार के०एम० पणिक्कर ने इस काल को “बेशर्मी और लूट का काल” कहा है|
- लार्ड क्लाइव ने कुछ प्रशासनिक सुधार भी किये थे| क्लाइव के द्वारा किये गये प्रशासनिक सुधारों का विवरण निम्नलिखित है –
- भारतीय अधिकारियों से अंग्रेजों को उपहार प्राप्त करने पर रोक लगा दिया|
- लॉर्ड क्लाइव ने कंपनी के अधिकारियों द्वारा निजी व्यापार के लिए दस्तक के दुरूपयोग पर भी प्रतिबंध लगा दिया|
- लॉर्ड क्लाइव ने 1767 ई० में अंग्रेज सैनिकों को प्राप्त होने वाले दोहरे भत्ते को समाप्त कर दिया, अब यह दोहरा भत्ता केवल उन्ही सैनिकों को दिया जाता था, जो बंगाल प्रेसिडेंसी में कार्य करते थे|इस आदेश के खिलाफ अंग्रेज अधिकारियों और सैनिको ने विशेष रूप से इलाहाबाद और मुंगेर के सैनिकों ने प्रतिक्रिया की| इसे ही “श्वेत विद्रोह” की संज्ञा दी गई|
Rammo chhavri
September 23, 2021, 5:08 pmPlz registered me
Aaditya Saini
May 13, 2021, 1:58 pmNice note sir