ब्रह्माण्ड
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- ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दिए गए प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं–
ऑटो श्मिड | धूल परिकल्पना |
लाप्लास | निहारिका परिकल्पना |
जॉर्ज लैमेन्तेयर | बिग बैंग सिद्धान्त |
- वर्तमान समय में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के सम्बन्ध में सर्वमान्य सिद्धान्त बिग बैंग सिद्धान्त या महाविस्फोट सिद्धान्त (Big Bang Theory) है | इसे विस्तारित ब्रह्माण्ड परिकल्पना (ExpandingUniverseHypothesis) भी कहा जाता है |
- वर्ष 1917 ई० में बेल्जियम निवासी खगोलशास्त्री जॉर्ज लैमेंन्तेयर ने बिग बैंग सिद्धान्त यामहाविस्फोट सिद्धान्त(ExpandingUniverseHypothesis)की व्याख्या की थी|
- बिग बैंग सिद्धान्त के अनुसार लगभग 15 अरब वर्ष पूर्व सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड एक पिंड के समान संकेन्द्रित था | अत्यधिक संकेन्द्रण के कारण अचानक इस पिंड में विस्फोट हो गया, जिससे इस पिंड के कण अंतरिक्ष में बिखर गये |
- अंतरिक्ष में बिखरे प्रत्येक कण एक ब्रह्माण्डके समान हैं | अंतरिक्ष में इन कणों का निरन्तर प्रसार हो रहा है किन्तु इनके मध्य की दूरी निश्चित रहती है |वैज्ञानिकों का मानना है कि बिग बैंग की घटना से लेकर आज तक ब्रह्माण्ड का विस्तार निरन्तर जारी है|
आकाशगंगा
- एक केंद्र के चारो तरफ चक्कर लगाते अरबों तारों के समूह को आकाशगंगा कहते हैं | एक आकाशगंगा में अनुमानत:100 अरब तारे होते हैं|ब्रह्माण्ड में अनुमानत: 100 अरब आकाशगंगा हैं| ब्रह्माण्ड इतना विशाल है कि इसका अनुमान भी लगाना अभी संभव नहीं हो सका है |
- आकाशगंगा के केन्द्र को बल्ज कहते हैं| बल्ज में तारों का घनत्व अपेक्षाकृत अधिक अथवा सघन होता है | केन्द्र से बाहर जाने पर तारों का घनत्व कम होता जाता है |
- आकाशगंगा तारों, गैसों एवं धूल कणों का विशाल समूह है जो गुरूत्वाकर्षण बल के कारण एकत्रित रहते हैं|
आकाशगंगा – मंदाकिनी
- ब्रह्माण्ड में अनुमानतः 100 अरब आकाशगंगा में से एक हमारी आकाशगंगा है जिसे मंदाकिनी अथवा दुग्धमेखला (Milkyway) कहते हैं|हमारे सौरमण्डल का मुखिया सूर्य इसी आकाशगंगा में स्थित है |
- आकाशगंगा में सूर्य अपने ग्रहों के साथ मिलकर आकाशगंगा के केन्द्र का चक्कर लगाता है | सूर्य लगभग 25करोड़ वर्ष में आकाशगंगा के केन्द्र का एक चक्कर पूरा करता है | सूर्य द्वारा पूरे किये गये इस एक चक्कर को एक ब्रह्माण्ड वर्ष कहा जाता है |
- पृथ्वी से आकाश में देखने पर प्रकाश की नदी के समान एक चमकीली पेटी दिखाई देती है| यह वास्तव में हमारी आकाशगंगा की एक भुजा है | इसे ही दुग्धमेखला (Milkyway) कहते हैं |
- मंदाकिनीकेसबसेनजदीकीआकाशगंगाकोदेवयानीअथवाएन्ड्रोमेडा(Andromeda)कहते हैं|
- ऑरियन नेबुला हमारी आकाशगंगा अर्थात् मंदाकिनी के सबसे चमकीले तारों का समूह है |
- साइरस अथवा डॉग स्टार सूर्य के बाद दूसरा सबसे चमकीला तारा है | जो हमें दिखाई देता है |साइरस सूर्य से लगभग 20 गुना अधिक चमकीला तारा है |यह रात में सबसे अधिक चमकता हुआ दिखाई देता है |
- सूर्य तथा चन्द्रमा के पश्चात् तीसरा सबसे चमकीला पिंड शुक्र है| शुक्र तारा नहीं है बल्कि यह एक ग्रह है |ग्रहों के पास अपना ऊष्मा और प्रकाश नहीं होता है|रात में चन्द्रमा के बाद शुक्र दूसरा सबसे चमकीला पिंड के रूप में दिखाई देता है |
- शुक्र भोर में पूरब की दिशा में तथा सायंकाल में पश्चिम की दिशा में चमकता हुआ दिखाई देता है | अत: शुक्र को सांझ का तारा अथवा भोर का तारा भी कहा जाता है |
- सूर्य का सबसे नजदीकी तारा प्राक्सीमा सेन्चुरी है |
- ब्रह्माण्ड की दूरी प्रकाश वर्ष में मापा जाता है | दूसरे शब्दों में प्रकाश वर्ष ब्रह्मांडीय दूरी मापने का पैमाना है | प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी कुल दूरी को एक प्रकाश वर्ष कहते हैं |
1 प्रकाश वर्ष = 9.46 X 1012 किलोमीटर |
- गैलीलियों ने सर्वप्रथम 1609 ई० में दूरबीन की सहायता से तारों का अध्ययन किया था| गैलीलियों ने दूरबीन की सहायता से ऐसे अनेक तारों की पहचान की है जिसे नंगी आँखों से नहीं देखा जा सकता था|
- तारे आकाशगंगा में गैस एवं धूल के विशाल बादलों के गुरुत्वाकर्षणएवं संकुचन से निर्मित होते हैं | जब किसी तारे का कुल हाइड्रोजन,हीलियम में परिवर्तित हो जाता है तो ऐसी दशा में तारों में संकुचन की क्रिया प्रारम्भ हो जाती है |तारों में जैसे-जैसे संकुचन बढ़ता जाता है वैसे-वैसे तारों का तापमान भी बढ़ता जाता है|जब तारों का तापमान 100 मिलियन सेन्टीग्रेट तक पहुँच जाता है तब तारों में परमाणविकक्रियाएं होना प्रारम्भ हो जाती हैं |
- तारों में निरन्तर नाभिकीय संलयन(Nuclear Fusion)की क्रिया चलती रहती है | इस क्रिया में अपार ऊर्जा उत्पन्न होती है | नाभिकीय संलयन के कारण ही तारों का अपना प्रकाश एवं ऊर्जा होता है | हाइड्रोजन बम की संकल्पना भी नाभिकीय संलयन पर ही आधारित है |
- तारों का निर्माण हाइड्रोजनका हीलियममें परिवर्तन के परिणामस्वरूप होता है अत: जब तारों में हाइड्रोजन गैस समाप्त हो जाती है तो नाभिकीय संलयन की क्रिया बाधित होने लगती है जिसके कारण तारों का जीवन समाप्त होने लगता है |
- तारों के आकार और जीवन अवधि में व्युत्क्रमानुपाती सम्बन्ध अर्थात् उल्टासम्बन्ध होता है | दूसरे शब्दों में, तारे का जितना बड़ा आकार होता है, उसकी जीवन अवधि उतनी ही कम होती है|इसके विपरीत तारे का आकार जितना छोटा होता है, उसकी जीवन अवधि उतनी ही अधिक होती है |
- तारे के निर्माण के प्रारम्भिक अवस्था में उसमें बहुत अधिक ऊर्जा होती है | जब तारे में अत्यधिक उर्जा होती है, तो तारे का रंग नीला दिखाई देता है |
- जब नाभिकीय संलयन की क्रिया के फलस्वरूप तारों की ऊर्जा में कमी आने लगती है तो तारों का रंगसफेद प्रतीत होने लगता है| इस प्रकार जब तारेके ताप में और अधिककमी आती है तब इस दशा में तारा पीले रंग का दिखाई देने लगता है तथा जब तारों केतापमान में अत्यधिक कमी हो जाती है तब ऐसी स्थिति में तारेका रंग लाल दिखाई देता है|
- इस प्रकार कहा जा सकता है कि ताराअपनी प्राम्भिक अवस्था में नीले रंग का और अपनी अंतिम अवस्था में लाल रंग का दिखाई देता है|
- तारे की ऊर्जा जब समाप्त होने लगती है तो यह लाल रंग का दिखाई पड़ता है|लाल तारे को रेड जायन्ट (RedGiant) कहते हैं |
- लाल तारे का बाहरी सतह निरन्तर फैलता रहता है|अत्यधिक फैलाव के कारण तारों में विस्फोट हो जाता है, जिसे सुपरनोवा विस्फोट (Supernovaexplode) कहते हैं |
- जब रेड जायन्ट (RedGiant)मेंसुपरनोवा विस्फोट(Supernovaexplode) के बाद जो बचा हुआ अवशेष होता है,उसका द्रव्यमान यदि सूर्य के द्रव्यमान के 44गुना द्रव्यमान की सीमा से कम होता है तो श्वेत वामन तारे में (WhiteDwarf)का निर्माण होता है |
- श्वेत वामन(WhiteDwarf) अन्तत: कृष्ण वामन(BlackDwarf) के रूप में समाप्त हो जाता है |
- सुपरनोवा विस्फोट के बाद बचे हुए अवशेष का द्रव्यमान सौर्यिक द्रव्यमान के 44 गुना की सीमा से अधिक होने पर वह न्यूट्रॉन तारा या पल्सर तारा बन जाता है |
- यदि कोई तारा चन्द्रशेखर सीमा से अधिक बड़ा हो लेकिन वह सूर्य के दोगुने से अधिक न हो तब ऐसी दशा में वह न्यूट्रॉन तारे में परिवर्तित हो जाता है |
- न्यूट्रॉन तारा एक ऐसा तारा होता है जिसमें गुरुत्वाकर्षण बल का प्रभाव इतना अधिक होता है कि यह सिकुड़ने (सम्पीडन) लगता है |अत्यधिक सम्पीडन के कारण इसका द्रव्यमान एवं घनत्वएक बिंदु पर आकर रुक जाता है| इसका परिणाम यह होता है कि इस तारे का घनत्व असीमित हो जाता है| असीमित घनत्व के कारण इसमें गुरुत्वाकर्षण बल इतना अधिक प्रभावी हो जाता है कि यह समस्त द्रव्यमान को अपने अन्दर समाहित कर लेता है |
- न्यूट्रॉन तारे में गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी अधिक होती है कि यहाँ से प्रकाश का पलायन भी नहीं हो पाता है| इसे ही कृष्णछिद्र अथवा कृष्ण विवर (BlackHole) कहते हैं |
HARI Babu
December 31, 2020, 9:40 amGood matter
Sanjay yadav
September 16, 2020, 7:19 amSSC students it is enough for me
Vivek kumar maurya
July 22, 2020, 5:12 pmसर चंद्रशेखर सीमा क्या होती है आपने ब्रह्मांड वर्ष कुछ और बताया है और नोट्स में कुछ और लिखा है कौन सा सही है please बता दीजिए
Neha
July 19, 2020, 11:23 pmthanku sir mujhe ap jaise Guru ki jarurat thi Upsc ki preparation ke liye aap guide karte rahiye
SITESH KUMAR
July 10, 2020, 3:08 pmसर नंगी आंखें ओर चन्द्रमा रहित रात का मतलब क्या है
Aman singh
July 3, 2020, 3:53 pmसर पीडीऍफ़ ओपन नहीं हो रहा है
Pingal prasad mishra
June 28, 2020, 4:47 pmReply
Samar Pratap Singh
June 27, 2020, 11:44 pmकेवल ब्रम्हांड वाले चैप्टर को छोड़ कर अन्य किसी भी चैप्टर में pdf डाउनलोड करने का विकल्प नहीं है सर जी। लिंक दीजिए डाउनलोड करने के लिए प्रत्येक चैप्टर में।
Man Singh
June 27, 2020, 9:59 amTo know more
Ramakant
June 24, 2020, 11:32 pmSir muje complete world and Indian geography ke notes chahiye latest wale.