भारत में चक्रवात
भारत में चक्रवात
उत्पत्ति, विशेषता, संरचना और प्रभाव Download
- भारत में चक्रवात प्राय: बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते हैं और पूर्व से पश्चिम की ओर गतिशील हो जाते हैं | पश्चिम की ओर गतिशील होने के पश्चात् पूर्वी घाट पर्वत से टकराते हैं | परिणामस्वरूप पूर्वी तटीय मैदानों पर इन चक्रवातों से वर्षा होती है |
- 21 जून के बाद सूर्य दक्षिणायन होने लगता है और 22 या 23 सितम्बर तक सूर्य विषुवत् रेखा पर लम्बवत् चमकने लगता है | इसके परिणामस्वरूप जुलाई महीने से अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) भी दक्षिण की ओर खिसकने लगता है | सितम्बर के पहले सप्ताह तक अंत: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) प्रायद्वीपीय भारत के दक्षिणी छोर को पार कर जाता है |
- इसके परिणामस्वरूप भारत के पूर्व एवं पश्चिम में स्थित बंगाल की खाड़ी और अरब सागर अत्यन्त गर्म हो जाते हैं | बंगाल की खाड़ी का गर्म जल सतह उष्णकटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आदर्श दशाएँ प्रदान कर देता है | जिसके चलते बंगाल की खाड़ी में उष्ण चक्रवात उत्पन्न होते हैं और पूर्वी जेट धाराओं के सहारे पूर्व से पश्चिम की ओर बढ़ते हैं और पूर्वी घाट से टकराकर उड़ीसा, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में वर्षा करते हैं |
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात उत्तरी मैदान में इलाहाबाद(प्रयागराज)और बनारस तक मानसून को प्रभावित करता है |
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात के केन्द्र में अत्यधिक निम्न दबाव का केंद्र उत्पन्न होता है | केन्द्र में सबसे कम वायुदाब लगभग 920 mb (मिलीबार) होता हैतथा बाहर की ओर जाने पर वायुदाब क्रमश: बढ़ता जाता है | केन्द्र में निम्न वायुदाब होने के कारण हवाएँ केन्द्र की ओर तीव्रता से प्रवाहित होती है | बाहर में केन्द्र की ओर बहने वाली ये हवाएँ सीधे केन्द्र में नहीं प्रवेश करती हैं | बल्कि चक्रवात के रूप में प्रवेश करती है | उत्तरी गोलार्द्ध में इन उष्ण चक्रवातों में हवाओं की दिशा घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत (anti clock wise) होती हैं |
- जब बाहर से केन्द्र की ओर हवाएँ प्रवेश करती है तो ये केन्द्र में प्रवेश नहीं कर पाती है, बल्कि केन्द्र के पास एक निश्चित दूरी पर पहुँचकर हवाएँ ऊपर की ओर उठ जाती हैं |
- चक्रवात के केन्द्र को चक्रवात की आँख (केन्द्र) कहते हैं |
- हवाएँ चक्रवात की आँख (केन्द्र) के पासपहुँचकर एक निश्चित सीमा तक ऊपर उठ जाती हैं, जिस निश्चित सीमा से टकराकर हवाएँ ऊपर की ओर उठती हैं, उसे चक्रवात की दीवार कहते हैं |
- चक्रवात की आँख (केन्द्र) एक शान्त क्षेत्र होता है इसके ऊपर का आकाश मेघ रहित होता है |जब हवाएँ आँख (केन्द्र) की दीवार पर टकराकर ऊपर उठती हैं, तो काले कपासी मेघों का निर्माण करती हैं |
- कपासी मेघों से वर्षा होती है, लेकिन चक्रवात के आँख (केन्द्र) के ऊपर का आसमान बिल्कुल साफ होता है | यहाँ पर हवाएँ बिल्कुल ठहरी हुई अथवा शान्त होती हैं| यहाँ पर वर्षा नहीं होती है |
- यही कारण है कि चक्रवात के केन्द्र में खड़े व्यक्ति को चक्रवात का अनुभव नहीं होता है, हालांकि जब चक्रवात भ्रमण करते हुए आगे की ओर बढ़ता है, तो व्यक्ति का चक्रवात के चपेट में आना निश्चित होता है |
- चक्रवात की आँख (केन्द्र) का व्यास लगभग 25 से 30 किमी० तक होता है, जबकि पूरे चक्रवात का व्यास लगभग 500 से 600 किमी०तक हो सकता है |
चक्रवात बनने की परिस्थितियाँ
- सागर सतह के जल का तापमान 270C से अधिक होना चाहिए, ताकि सागर सतह पर तेजी से वाष्पीकरण हो सके अगर सागर सतह के जल का तापमान 270C से कम होगा तब चक्रवात उत्पन्न नहीं होंगे | इसलिए चक्रवात उष्णकटिबंधीय क्षेत्र अर्थात् विषुवत् रेखा के समीप ही पैदा होते हैं |
- उष्णकटिबंधीय चक्रवात हमेशा पूर्वी तट पर ही बनते हैं | ऐसे चक्रवात पश्चिमी तट पर कभी नहीं बनते हैं,क्योंकि पश्चिम की ओर सागर की ठण्डी जल धारा प्रवाहित होती है और महाद्वीपों के पूर्वी तट पर सागर की गर्म जलधारा प्रवाहित होती है |
- कॉरिऑलिस बल का मान 00 से अधिक होना चाहिए |
- विषुवत् रेखा पर कॉरिऑलिस बल का मान 00 होता है, इसलिए 100 उत्तरी-दक्षिणी अक्षांश पर ही उष्णकटिबंधीय चक्रवात का निर्माण होता है |
- कॉरिऑलिस बल का अधिकतम मान ध्रुवों पर होता है, लेकिन वहां पर चक्रवात नहीं बनते हैं, क्योंकि वहाँ का जल ठण्डा होता है |
उष्ण चक्रवातों की ऊर्जा का स्रोत
- उष्ण चक्रवातों की ऊर्जा का स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा होती है |
- गुप्त ऊष्मा दो प्रकार की होती है –
(i) वाष्पन की गुप्त ऊष्मा
(ii) संघनन की गुप्त ऊष्मा
- पानी गर्मी से जलवाष्प के रूप में परिवर्तित हो जाता है | जलवाष्प का जलबूंदों में बदलना ही संघनन कहलाता है |
- जब जलवाष्प जलबूंदों में बदलता है, तो जलवाष्प की गुप्त ऊष्मा पुन: वायुमण्डल में समाहित हो जाती है | इसे हम संघनन की गुप्त ऊष्मा कहते हैं |
- उष्ण चक्रवातों की ऊर्जा का स्रोत संघनन की गुप्त ऊष्मा होती है |
चक्रवातों की मृत्यु
- जब तक चक्रवातों की आँख (केन्द्र) को संघनन की गुप्त ऊष्मा मिलती रहती है, तब तक चक्रवात तबाही करता रहता है | जैसे ही चक्रवात की आँख (केन्द्र) को मिलने वाली संघनन की गुप्त ऊष्मा समाप्त हो जाती है, चक्रवातों की मृत्यु हो जाती है |
- चक्रवात के मृत्यु की दो परिस्थितियाँ होती हैं –
(i) चक्रवात भ्रमणशील होते हैं | जब चक्रवात उष्णकटिबंधीय सागरीय जल से गमन करते हुए ठण्डे क्षेत्रों में चले जाते हैं, तो चक्रवात की आँख (केन्द्र) को मिलने वाली संघनन की गुप्त ऊष्मा बाधित हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप चक्रवात की मृत्यु हो जाती है |
(ii) जब चक्रवात भ्रमण करते हुए स्थलखण्डों में प्रवेश कर जाते हैं,तब चक्रवात की आँख (केन्द्र) को प्राप्त होने वाली संघनन की गुप्त ऊष्मा बाधित हो जाती है और चक्रवात की मृत्यु हो जाती है |
- चक्रवातों में सर्वाधिक वर्षा चक्रवात की आँख (केन्द्र)की दीवार के सहारे होती है |
- हवाएँ आँख (केन्द्र) की दीवार के साथ अवसरित होकर ऊपर की ओर उठती हैं इसलिए सबसे ज्यादा वर्षा इसी स्थान पर होता है, इन्हें कपासी बादल कहते हैं |
- चक्रवात की आँख (केन्द्र) वर्षा विहीन क्षेत्र होता है, यहाँ न तो वर्षा होतीहै और न ही कोई तूफान होता है |