ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रिया-विधि

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ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रिया-विधि
ग्रीष्म ऋतु में मौसम की क्रिया-विधि

मार्च और अप्रैल में मौसम की क्रिया-विधि

  • 22 मार्च के बाद सूर्य के उत्तरायण होने के साथ ही मार्च और अप्रैल के महीनों में पश्चिमोत्तर भारत गर्म होने लगता है, जिसके चलते पश्चिमोत्तर भारत में वायुमंडल में एक निम्न वायुदाब का क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है|
  • इस निम्न वायुदाब के क्षेत्र को भरने के लिए उत्तर भारत में स्थानीय हवाएँ चलने लगती हैं, क्योंकि निम्न वायुदाब का क्षेत्र अभी इतना शक्तिशाली नहीं होता है कि हिन्द महासागर और अरब सागर की हवाओं को खींच सके| परिणाम स्वरूप पूरे उत्तर भारत में इस निम्न वायुदाब के क्षेत्र को भरने के लिए तेज हवाएँ चलने लगती हैं और ये हवाएँ आपस में टकराकर ऊपर की ओर उठने लगती हैं|
  • इन हवाओं में पर्याप्त नमी नहीं होती है, जिसके कारण ऊपर उठकर ये हवाएँ वर्षा नहीं करती हैं, परिणाम स्वरूप मार्च और अप्रैल के महीनों में पूरे उत्तर भारत में धूल भरी आंधियाँ बहती हैं|

मई का मौसम

  • 22 मार्च के बाद सूर्य उत्तरायणहोता रहता है| जैसे-जैसे सूर्य उत्तरायण होता रहता है,अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ)भी उत्तर की तरफ बढ़ता रहता है|
  • मई महीने के पहले सप्ताह में अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी छोर पर प्रवेश कर जाता है, जिसके कारण दक्षिण भारत में हवाएँ निम्न वायुदाब (Low Pressure) की ओर आकर्षित होती हैं और ये हवाएँ आपस में टकराकर ऊपर उठती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप दक्षिण भारत में वर्षा होती है|
  • अरब सागर तथा बंगाल की खाड़ी बहुत नजदीक होने के कारण वायुमण्डल में नमी की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक होती है| यही कारण है कि अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) से हवाएँ टकराकर ऊपर उठती हैं और दक्षिण भारत में वर्षा करती हैं|
  • ये वास्तव में मानसूनी वर्षा नहीं होती हैं, इसे हम मानसून पूर्व फव्वार कहते हैं|
  • मानसून पूर्व फव्वार मुख्य रूप से केरल, कर्नाटकऔर तमिलनाडु राज्यों की विशेषता है|
  • अलग-अलग राज्यों में मानसून पूर्व फव्वार को अलग-अलग नामों से जाना जाता है, क्योंकि मानसून से पहले होने वाली वर्षा इन राज्यों में फसलों के लिए लाभदायक होती है|
  • केरल मेंइसेफूलों वाली वर्षा और आम्र वर्षा कहते हैं, क्योंकि इस समय आम की फसल के लिए यह वर्षा उपयोगी होती है|
  • कर्नाटक में मानसून पूर्व फव्वार को कॉफी वर्षा तथा चेरी ब्लॉसम भी कहते हैं|
  • अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ)लगातार उत्तर की ओर खिसकता है और मई महीने के अन्त में अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) जब कर्क रेखा के आस-पास पहुँच जाता है, तो पश्चिम बंगाल मौसमी हल-चल का केन्द्र बन जाता है| इस समय पश्चिम बंगाल में बहुत तेज धूल भरी आंधियाँ चलती हैं और यदि वायु में नमी की मात्रा होती है, तो पश्चिम बंगाल में भारी मात्रा में वर्षा होती है|
  • पश्चिम बंगाल में मई महीने के अंत में आने वाली इन तेज तूफानों से बहुत ज्यादा विनाश होता है, इसके चलते यहाँ पर भारी मात्रा में नुकसान होता है, इसलिए हम इस तूफान को काल वैशाखी कहते हैं|

जून का महीना

  • सूर्य की लम्बवत् किरणे कर्क रेखा पर 21 जून को पहुँचती हैं, लेकिन 1 जून आते-आतेअन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र(ITCZ)अपने आप को पश्चिमोत्तर भारत में स्थापित कर लेता है, जिसके चलते पश्चिमोत्तर भारत में निम्न वायुदाब का केन्द्र और अधिक शक्तिशाली हो जाता है|
  • पश्चिमोत्तर भारत में विकसित यह निम्न वायुदाब का केन्द्र आस-पास की हवाओं को और अधिक शक्ति से आकर्षित करता है, जिसके चलते मई महीने के अन्त और जून महीने के प्रारम्भ में पूरे उत्तर भारत में बहुत गर्म हवाएँ चलती हैं और इन गर्म हवाओं को लू कहते हैं|
  • लू नामक गर्म एवं शुष्क हवाएँ केवल उत्तर भारत में चलती हैं| इनका सम्बन्ध दक्षिण भारत से बिल्कुल नहीं है|
  • लू अत्यधिक गर्म और शुष्क वायु है, इसमें नमी की मात्रा बिल्कुल नहीं होती हैं| यही कारण है कि ये हवाएँ स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक होती हैं|
  • जब पश्चिमोत्तर भारत में विकसित अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) 1 जून के आस-पास बहुत अधिक शक्तिशाली हो जाती है तो ये हिन्द महासागर की आर्द्रता वाली हवाओं को खींच लेती हैं|
  • भारत में हिन्द महासागर से आने वाली हवाएँ दक्षिण-पश्चिम दिशा से प्रवाहित होकर आती हैं, इसलिए इन्हें हम दक्षिणी-पश्चिमी मानसून भी कहते हैं|
  • भारत में 90% वर्षा इसी दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से ही होती है|
  • दक्षिणी-पश्चिमी मानसून भारत में प्रवेश करते ही सबसे पहले पश्चिमी घाट पर्वत से टकराकर केरल के मालाबार तटपर 1 जून को वर्षा करती हैं, इसके बाद दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से क्रमश: उत्तर में हिमालय और पश्चिम में दिल्ली तक वर्षा होती है|
  • अन्त: उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) को विषुवत् रेखीय निम्न दाब द्रोणी या मानसूनी निम्न दाब द्रोणी भी कहते हैं|

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SITESH KUMAR
June 8, 2020, 11:18 am

Thanks sir ji

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K. K. Verma
May 10, 2020, 9:03 pm

Thank you sir for such a easy-way teaching.

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Kiran
April 23, 2020, 10:59 am

Thank you sir

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vinod
March 31, 2020, 2:13 pm

very nice video sir

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Jay
March 17, 2020, 5:38 pm

Mahoday or chpter ke note kaha hai