1857 की क्रांति के असफलता के कारण
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- 1857 का विद्रोह ब्रिटिश शासन के खिलाफ भारतीय जनता का सबसे बड़ा उभार था|1857 के विद्रोह की असफलता ब्रिटिश श्रेष्ठता और विद्रोह के कमजोरियों में निहित थी|
- 19वीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश सम्राज्यवाद पूरे दुनिया में शक्ति के सर्वोच्च शिखर पर था|ब्रिटिश साम्राज्य अपने शक्ति के बल पर न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में अपना नियंत्रण स्थापित किया था|एक ऐसा साम्राज्य जो पूरे विश्व में शक्ति के सर्वोच्च शिखर पर हो उसे पराजित करना इतना आसान नहीं था|
- अंग्रेज अपार आर्थिक संसाधनों से पूर्ण थे|आर्थिक संसाधनों के साथ-साथ अंग्रेजों के पास सैमसन, निकल्सन, हडसन, हैवलॉक और आउट्रम जैसे अंग्रेज सेनापति थे, अर्थात अपार आर्थिक संसाधन, अपार सैन्य शक्ति और योग्य सेनापतियों के दम पर उन्होंने शीघ्र ही भारत के विद्रोहियों को निरुत्साहित कर दिया था|
- डलहौजी के शासन काल में यातायात के संसाधनों और संचार के साधनों का विकास हुआ था|वास्तव में इस विद्रोह को दबाने में यातायात और संचार के साधनों का भी लाभ अंग्रेजों को प्राप्त हुआ था|
- रेलवे के विकास के चलते अंग्रेजी सैनिकों के तीव्र आवागमन को मदद मिला|साथ ही डाक और तार व्यवस्था के विकास के कारण अंग्रेज परस्पर संपर्क में बने रहे|इसके चलते अंग्रेज एक दूसरे की गतिविधियों से अंजान नही थे बल्कि ये आपस में संपर्क में बने रहे, जबकि भारतीय विद्रोही इसका लाभ नहीं उठा पाए क्योंकि अंग्रेजी सरकार ने इसका विकास किया था|यही कारण था कि भारतीय विद्रोही एक दूसरे से अलग-थलग बने रहे और एक दूसरे के गतिविधियों से अंजान बने रहे|यह भी भारतीय विद्रोह की एक कमजोरी थी|
- वास्तव में यह विद्रोह ब्रिटिश श्रेष्ठता से कहीं ज्यादे अपनी कमजोरियों के कारण असफल रहा|विद्रोह की जो कमजोरियां थी, वह वास्तव में व्यक्तियों की कमजोरियों से कहीं अधिक गहराई में नीहित थी|
विद्रोह का परमपरागत स्वरुप
- 1857 ई० का विद्रोह परम्परागत स्वरुप का था|1857 का विद्रोह किसी आधुनिक विचारधारा अथवा किसी गतिशील विचारधारा पर आधारित नहीं था|यह वास्तव में मध्यकालीन सोच पर आधारित था|विद्रोहियों के पास कोई स्पष्ट कार्यक्रम और विचारधारा ही नहीं था|उन्हें यह तो पता था कि हमे अंग्रेजों का विरोध करके उन्हें भारत से हटाना है किन्तु उन्हें यह मालूम नहीं था कि जबअंग्रेज भारत से चले जायेंगे तो हम किस प्रकार की सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था लागू करेंगे|
- विरोधियों के पास न तो भावी भविष्य की और न ही अंग्रेजों को भारत से हटाने की विचारधारा थी|उनके पास ब्रिटिश मुक्त भारत की कोई स्वतंत्र रणनीतिनहीं थी|उन्हें यह बिल्कुल पता नहीं था कि भारत का भविष्य में स्वरुप कैसा होगा, भारत में किस प्रकार की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था लागू की जाएगी, भारत में शिक्षा किस प्रकार की होगी|
- वास्तवमें 1857 के विद्रोह में जितने नेता उभरे थे, उन सबका उद्देश्य एक दूसरे से बिल्कुलभिन्न था जैसे- झाँसी की रानी को अपने पुत्र के लिए राज्य चाहिए था,किसानों को अपनी खोई हुई जमीन चाहिए थी, साथ ही उन्हें लगान से मुक्ति चाहिए थी, जो किसान महाजनों और सूदखोरों के चंगुल में फंसे थे, उन्हें ब्याज से मुक्ति चाहिए थी|सैनिकों को अच्छा वेतन चाहिएथा, साथ ही अपने धर्मं के पालन की अनुमति चाहिए थी| इस तरह से सभी अपने-अपने उद्देश्यों के लिए लड़ रहे थे|
- जब सब अपने-अपने उद्देश्य के लिए लड़ रहे थे इसलिए एक साझा उद्देश्य नहीं बन पाया इसलिए लिखा गया है कि विद्रोहियों पास ब्रिटिश मुक्तभारतकी कोई भावी रणनीति ही नही थी|
- विद्रोह के दौरान बहादुरशाह जफर को मुग़ल सम्राट घोषित कर दिया गया|यह दर्शाता है कि विद्रोही पुनः मुग़ल शासन की स्थापना करना चाहते थे|उनको केवल इतना पता था कि अंग्रेज भारत से चले जाएँ और बहादुरशाहफिर से भारत का बादशाह बन जाये और जिस तरह से भारत में व्यवस्थाएं चल रहीथीं, वैसा हीफिर से चलता रहे|
- विद्रोहियों के कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण पक्ष मध्यकालीन शासन व्यवस्थाकी स्थापना करना था|इसी से प्रेरित होकर उन्होंने बहादुरशाह को भारत का सम्राट घोषित कर दिया था|विद्रोही इस बात को समझ सकने में असफल रहे की भारत की मुक्ति मध्यकालीन सामंती व्यवस्थाओं को पुनः स्थापित करने में नहीं है बल्कि आगे बढ़कर आधुनिक समाज, आधुनिक अर्थव्यवस्था, वैज्ञानिक शिक्षा और प्रगितिशील राजनीतिक संस्थाओं को गले लगाने से है|
- वास्तव में 1857 के विद्रोह को भारत को गुलाम बनाने वाले उपनिवेशवाद की कोई खास समझ नही थी, वे अंग्रेजों की ताकत को समझते ही नही थे, उन्हेंभारत को गुलाम बनाने वाले उपनिवेशवाद की समझ नही थी|आन्दोलन सत्ता पर अधिकार किये जाने के बाद लागू किये जाने वाले किसी सामाजिक विकल्प से रहित था|
- इस आन्दोलन में प्रगतिशील नेतृत्व का आभाव था|1857 के विद्रोह के दौरान कोई प्रगतिशील नेतृत्व नहीं उभर पाया जैसा की कांग्रेस की स्थापना के बाद एक के बाद एक उभरते रहे थे|
- प्रगतिशील योजना और कार्यक्रम के आभाव में प्रतिक्रियावादी और सामंती तत्त्व आन्दोलन का नेतृत्व हड़पने में सफल रहे|अंग्रेजों ने भारत में आने के बाद जिस सामंती व्यवस्था को ध्वस्त किया था, वही सामन्ती प्रतीक इस विद्रोह का नेतृत्व कर रहे थे|1857 के विद्रोह में कोई ऐसा नेतृत्व नहीं उभर पाया जो आन्दोलन को आधुनिक सोच पर आधारित दिशा प्रदान कर पाता|
- वास्तव में 1857 ई० कीक्रांतिकी यही कमजोरियां थीं जिसके कारण यह विद्रोह असफल हो गया|जहाँ एक ओर भारतीय विद्रोहियों की कोई योजना, और भावी रणनीति नहीं थी, वहीं दूसरी ओर अंग्रेज अपनी नीतियों और रणनीति से पूरेविश्व पर शासन कर रहे थेइसलिए इस विद्रोह का सफल होना संभव नहीं था|
- इसी तरह इस आन्दोलन में तरह-तरह के तत्त्व जैसे-सैनिक, किसान, मजदूर और राजा आदि शामिल थे, और इनके अपने-अपने निजी उद्देश्य भी थे|ये सभी लोग अंग्रेजों से साझी घृणा के कारण ही एक दूसरे से जुड़े हुए थे|इनके बीच कोई अन्य संपर्क सूत्र नहीं था|इनमे से हर-एक की अपनी शिकायत थी और स्वतंत्र भारत की राजनीति की अपनी धारणाएं थी|
विद्रोह का क्षेत्रीय स्वरुप
- स्वरुप यह विद्रोह अखिल भारतीय स्वरूप धारण नहीं कर पाया|विद्रोह हालांकि उत्तर भारत के एक बड़े क्षेत्र में फैला इसके बावजूद यह विद्रोह पंजाब और बंगाल में नहीं फ़ैल पाया|इसके अतिरिक्त उड़ीसा, जम्मू कश्मीर और पूरा दक्षिण भारत पूरी तरह से इस विद्रोह से अछूता रहा|
- इस विद्रोह में जन समर्थन का आभाव देखा गया|इस विद्रोह में उच्च एवं मध्यम वर्ग के पढ़े-लिखे भारतीय और व्यापारी वर्ग विद्रोह का आलोचक बना रहा|यह वर्ग विद्रोह को अपना समर्थन नहीं दिया|
- विद्रोही जिस तरह से अन्धविश्वासों का प्रयोग करते थे और प्रगतिशील आधुनिक उपायों का विरोध करते थे, उसका परिणाम यह हुआ की पढ़ा-लिखा भारतीय वर्ग आन्दोलन से अलग होकर दूर हो गया|
वर्ग संघर्ष और नीहित स्वार्थों की लड़ाई
- इस विद्रोह में भावी भविष्य और रणनीति का तो पूरी तरह से आभाव था इसलिए भावी रणनीति और स्पष्ट उद्देश्य के आभाव में कहीं वर्ग संघर्ष के मुद्दे उभर गये, कहीं नीहितस्वार्थ की लड़ाई शुरू हो गई|इस विद्रोह में कहीं जमीदारों को मारा गया, कहीं महाजनों के घरों में आग लगा दिया गया|वास्तव में सैनिक स्वार्थ रहित थे और निःसंदेह सैनिक बहादुर भी थे, किन्तु इन सैनिकों में सबसे बड़ी कमीयह थी कि सैनिक अनुशासित नहीं थे|
- अनुशासन की कमी के कारण विद्रोही सैनिक, दंगाई भीड़ की तरह व्यवहार करते थे|उदहारण के लिए- कानपुर में अंग्रेजों के औरतों और बच्चों को मार दिया गया|दूसरे क्षेत्रों के सैनिक एक दूसरे की गतिविधियों से अंजान थे, उनमे आपस में अंग्रेजों के प्रति घृणा को छोड़कर कोई ऐसा तत्त्व नहीं था जो उन्हें एक कड़ी के रूप में जोड़ सकता|अक्सर ये सैनिक किसी क्षेत्र विशेष में अंग्रेजों की राजनीतिक सत्ता उखाड़ फेकते थे किन्तु इन्हें यह पता नही होता था कि इन्हें आगे अब क्या करना चाहिए|
- इस समय भारत आधुनिक राष्ट्रवाद से परीचित नही था, जैसा कि1885 ई० के बाद कांग्रेस की स्थापना के बाद देखा गया|अब अंग्रेजों से प्रत्यक्ष लड़ाई करने के बजाय एक दूसरे तरह की रणनीति अपनाई गई|पहले इसे गरम पंथी रणनीति का नाम दिया गया, फिर नरम पंथी रणनीति को अपनाया गया|इसके बाद गांधीवादी युग की शुरुआत हुई|
Akash kumar
June 30, 2023, 8:39 pmSir History ka remaining notes kaha milega ?
Vinod kumar
August 19, 2021, 11:56 pmHi sir aap ka notes hamare liye sanjivani buti h than u sir
Shweta sharma
June 11, 2021, 1:53 pmSir please ek baar pre or main mai geography kitna sufficent hai wo bta dijiye apke videos bhut helpful hai hum jaise baccho ke liye jo coaching nhi kr skte thnku so much sir
स्वतंत्रता संग्राम के कुछ प्रमुख व्यक्तित्व- हाय दोस्तों स्वागत है आपका इस जानकारी
May 11, 2021, 12:08 pm[…] LEARN MORE–1857 की क्रांति के असफलता के कारण […]
Deepak kumar
March 3, 2021, 7:57 pmNot chaiy