लॉर्ड वेलेजली का भारत में कार्यकाल 1798 ई० से 1805 ई० तक था| लॉर्डवेलेजली के सामान ही लॉर्डहेस्टिंग्स भी साम्राज्यवादी था| इसके समय मेंभारत का नेपाल से (1814-1816) के बीच युद्ध हुआ था|इस युद्ध की समाप्तिसुगौली की संधि के बाद हुई|इस संधि के परिणामस्वरुप भारत को गढ़वाल,कुमाऊ,शिमला, रानीखेत और नैनीतालजैसे स्वास्थ्यवर्धक जलवायु क्षेत्र प्राप्त हुआ|
लॉर्डहेस्टिंग्स ने पिंडारियों का दमन किया|पिंडारी मराठावाड़ क्षेत्र में रहा करते थे| मराठावाड़ क्षेत्र में मराठों का शासन था|मराठों की आय का प्रमुख श्रोत भी कुछ हद तक हमला करना और लूट-पाट करना था|
मराठावाड़ क्षेत्र में शासक पेशवा और छत्रपति थे| इनके आलावा पिंडारी एक तरह से गिरोह बनाकर चलते थे| ये शासन नही करते थे, ये मुख्य रूप से लूट-पाट का कार्य करते थे|इन पिंडारियों को मराठा शासकों का समर्थन प्राप्त था|
लॉर्ड हेस्टिंग्स ने पिंडारियों का दमन करने के लिए टामस हेस्लो को विशेष रूप से नियुक्त किया था|पिंडारियों का दमन करने के लिए लॉर्डहेस्टिंग्सने पिंडारियों पर उत्तर से और टामस हेस्लो ने दक्षिण से हमला किया कुछ वर्षों तक लड़ने के बाद पिंडारियों का दमन हो गया|पिंडारी वास्तव में मराठी भाषा का शब्द है|
लॉर्डहेस्टिंग्स ने ही मराठा संघ का दमन किया|मराठा राज्य का निर्माण शिवाजी ने किया था|शिवाजी के बाद के उत्तराधिकारी कमजोर साबित हुए|शिवाजी के काल में औरंगजेब का दक्षिण में अभियान हुआ और शिवाजी ने बड़ी बहादुरी से औरंगजेब का सामनाकिया|
औरंगजेब एक शक्तिशाली शासक था किन्तु अपने पूरे शासनकाल में उसने मराठा राज्य पर अधिकार नही कर पाया|1707 ई० में औरंगजेब की मृत्यु के बाद “साहू” छत्रपति बना|
साहू ने अपने एक सरदार को सेनाकर्तेय (सेनापति) का पद दिया|उस सेनाकर्तेय का नाम बालाजी विश्वानाथ था|सेनाकर्तेय को पेशवा भी कहा जाता था|बालाजी विश्वनाथपहला पेशवा था|साहू के बाद के छत्रपति धीरे-धीरे अयोग्य और कमजोर होते गये|छत्रपति की राजधानी सतारा थी और पेशवा की राजधानी पुणे में थी|
बालाजीविश्वनाथ ने पेशवा के पद को काफी महत्वपूर्ण बना दिया|पेशवा के शासन काल में कई क्षेत्रों में अनेक मराठा सरदार ताकतवर बन कर उभरे|इन सरदारों पर पेशवा का नाममात्र का नियंत्रण था|ये ताकतवर सरदार पेशवा को अपने बराबर का शासक मानते थे|
इन सरदारों में नागपुर के भोसले,ग्वालियर के सिंधिया और इंदौर के गायकवाड़ प्रमुख थे|परिणामस्वरुप कई सरदारमिलकर मराठाक्षेत्र पर शासन करते थे|इसी शासनकरने के तरीके को मराठा संघ कहा जाता है|
पिछले अध्याय में बताया गया था किलॉर्डवेलेजली ने भारतीय राज्यों को सहायक संधि के मानने पर मजबूर किया और उनके राज्यों में सहायक सेना रख दी|ये सेना देशी राज्यों के खर्चे पर रहते थे किन्तु इनकी वफ़ादारी कंपनी के प्रति थी|
मराठा संघ के अनेक सरदारों ने लॉर्डवेलेजली की सहायक संधि स्वीकार कर लिया था अर्थात अंग्रेजों की अधीनता स्वीकार करके अपनी विदेश नीति अंग्रेजों को सौंप दिया था|इस तरह अब किसी अन्य विदेशी ताकत से देशी राज्य स्वयं बात-चित नहीं कर सकते थे|
वेलेजली की सहायक संधि स्वीकार करने वालोंमें पेशवा (1802ई०में),नागपुर के भोसले (1803ई०में),सिंधिया (1804 ई० में) ने सहायक संधि स्वीकार किया था|
मराठा संघ के शासक सहायक संधि से तंग आकार फिर से स्वतंत्र होना चाहते थे इसलिए इन्होने विद्रोह करना शुरू कर दिया|इन सरदारों के विद्रोह के कारणलॉर्डहेस्टिंग्स ने मराठा राज्य पर आक्रमण कर दिया था और मराठा संघ का अंत कर दिया था|
मराठा साम्राज्य का अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय था| बाजीराव द्वितीय को गद्दी से हटाकर कानपुर के निकट बिठ्ठुर नामक स्थान पर 18 लाख रुपये की वार्षिक पेंशन देकर भेज दिया गया था|सतारा की गद्दी शिवाजी के एक वंशज प्रताप सिंह को दे दी गई|इस तरह से मराठा राज्य का अंत हो गया|
लॉर्डविलियम बेंटिक (1828-1835)
लॉर्डविलियम बेंटिक को 1803ई० में पहले मद्रास प्रेसिडेंसी का गवर्नर नियुक्त किया गया था|मद्रास प्रेसिडेंसी का गवर्नर रहते हुए इन्होने भारतीय सैनिकों के खिलाफ एक आदेश जारी किया|इस आदेश के द्वारा इन्होने भारतीय सैनिकों के धार्मिक प्रतीकों जैसे- पगड़ी पहनना, तिलक लगाना,कानो में कुंडल पहनना आदि पर प्रतिबंध लगा दिया|
विलियम बेंटिक के इस आदेश को भारतीय सैनिकों ने इसे अपने धार्मिक भावनाओं पर हमले के रूप में लिया, परिणामस्वरूप मद्रास के वेल्लोर में भारतीय सैनिकों ने विद्रोह कर दिया|इस तरह भारतीय सैनिकों का अंग्रेजों के खिलाफ पहला सैनिक विद्रोहलॉर्डविलियम बेंटिक के शासनकाल में वेल्लोर में हुआ था|
1829 ई० में राजा राममोहन राय के प्रयासों से लॉर्डविलियम बेंटिक ने नियम -17 द्वारा सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया और इसे दंडनीय अपराध घोषित किया|सती प्रथा का अंत करने के लिए लॉर्डविलियम बेंटिक ने कर्नल स्लीमन को नियुक्त किया था|
लॉर्डविलियम बेंटिक के समय में ही 1833 ई० का चार्टर एक्ट पारित हुआ था|भारत में कंपनीके शासन की अवधि को और आगे बढ़ाने के लिए ब्रिटिश संसद से अनुमति लेना आवश्यक था|1833 ई० के चार्टर एक्ट में यह स्वीकार किया गया कि भारत में सेवाओं में भर्ती का आधार, योग्यता होगी|इस एक्ट मे कहा गया था कि भारतीय सेवाओं में भर्तीबिना किसी धर्मं, जन्म स्थान और रंग भेद के आधार पर किया जायेगा|यह प्रावधान केवल सैद्धांतिक तौर पर ही रहा, इसका व्यावहारिक जीवन पर कोई असर नही था|
लॉर्डकार्नवालिस को सिविल सेवाओं का जन्मदाता कहा जाता है|लॉर्डविलियम बेंटिक के काल में ही भारत में अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली को लागू किया गया|अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कर भारतीय कितना भी पढ़-लिख जाये लेकिन उन्हें कभी उच्च पदों पर नियुक्त नही किया जाता था|
लॉर्डविलियम बेंटिक के समय में ही भारत में शिक्षा का माध्यम और विषय-वस्तु क्या हो इस पर गवर्नर-जनरल को परामर्श देने के लिए एक लोक शिक्षा समिति की स्थापना की गई| इस समिति में 10 सदस्य थे| इस समिति में एक विधि सदस्य मैकाले था|लॉर्डमैकाले घोर पश्चात्यावादी था|यह भारतीय ज्ञान-विज्ञान और भारतीय शिक्षा को गैर-महत्वपूर्ण मानता था|इसका मानना था कि यूरोप के किसी एक पुस्तकालय का एक कोना, समस्त पूर्वी ज्ञान के बराबर है|
विधि सदस्य मैकाले के प्रस्ताव पर 1835 ई०लॉर्डविलियम बेंटिक ने स्वीकार किया कि भारत में उच्च शिक्षा,अंग्रेजी माध्यम में दी जाएगी|
लॉर्डडलहौजी (1848-1856)
लॉर्ड डलहौजी ने 1852 ई० में पंजाब पर अधिकार कर लिया था|लॉर्डडलहौजी भारत में व्यपगत का सिद्धांत अथवा राज्य हड़पने की नीति के लिए काफी प्रसिद्ध हुआ|
लॉर्ड डलहौजी ने एक नीति अपनाई जिसे हड़प की नीतिनाम दिया गया|यह सिद्धांत इस तर्क पर आधारित था कि अगर किसी शासक की मृत्यु हो जातीहै और उसका कोई पुरुष वारिस नहीं है, तो ऐसी स्थिति में उसकी रियासत हड़पली जाएगी यानी कंपनी के भूभाग का हिस्सा बन जाएगी|
अनेक राज्य जिनके उत्तराधिकारी नहीं होतेथे, वे बच्चों को गोद ले लिया करते थे, जिससे उन्हें अपना उत्तराधिकारी बना सकें|दत्तक पुत्रों को लॉर्डडलहौजीने मान्यता प्रदान नहीं की| इस आधार पर लॉर्डडलहौजी ने अनेक भारतीय राजाओं के राज्य को हड़प लिया| इसे ही व्यपगत कीनीति कहा जाता है|
लॉर्डडलहौजी के द्वाराव्यपगत का सिद्धांत अथवा राज्य हड़पने की नीति के तहत निम्नलिखित राज्यों को हड़प लिया गया –
सतारा – सतारा ऐसा पहला राज्य था, जिसे 1848 ई० में व्यपगत सिद्धांत के अंतर्गत सबसे पहले हड़प लिया गया|
जैतपुर (महाराष्ट्र )-1849ई०
संबलपुर (उड़ीसा)– 1850 ई०
बघाट (पंजाब )– 1850 ई०
उदेपुर (मध्य प्रदेश )-1852 ई०
झाँसी (उत्तर प्रदेश )– 1853 ई० झाँसी के शासक गंगाधरराव थे|
नागपुर (महाराष्ट्र)– 1854ई०
अवध (उत्तर प्रदेश )– 1856 ई०
1764ई ० के बक्सर के युद्ध के पश्चात 1765 ई० में इलाहबाद की संधि हुई थी|इलाहाबाद की प्रथम संधि मुग़ल बादशाह शाह आलम द्वितीय के साथ हुई थी, जबकि इलाहबाद की दूसरी संधि 1765 ई० में ही अवध के नवाब शुजाउद्दौला के साथ हुई थी|
इलाहाबादकी संधि के तहत अवध राज्य में उसी के खर्चे पर एक अंग्रेजी सेना रख दी गई थी|यह अंग्रेजी सेना अवध राज्य की सुरक्षा कर रही थी साथ ही साथ अवध राज्य के शासक पर भी निगरानी कर रहीथी, जिससे दुबारा किसी युद्ध में अंग्रेजों के खिलाफ शामिल न हो जाये|
अवध पहला ऐसा देशी राज्य था, जहाँ सहायक संधि के माध्यम से पहली बार 1765 ई०में इलाहाबाद की संधि के द्वारा अंग्रेजी सेना रखी गई थी|अवध का राज्य 1765 ई० के बाद कभी भी अंग्रेजी सेना के विरुद्ध किसी प्रकार के षड्यंत्र में शामिल नहीं हुआ था|
1801ई० में अवध ने भी सहायक संधि स्वीकारकर ली थी|सहायक संधि स्वीकार कर लेने के बाद भी अंग्रेजों ने अवध का विलय कर दिया, इसलिए इस विलय को अन्यायकारी माना जाता है|
1856ई० एक अंग्रेज अधिकारी आउट्रमथा|इससे अवध के कानून व्यवस्था के बारे में रिपोर्ट पूछा गया आउट्रमने रिपोर्ट तैयार किया कि अवध की शासन व्यवस्था अच्छी नहीं है अर्थात अवध पर कुशासन का आरोप लगाया गया|
इस बार अंग्रेजों ने एक नया तर्क दिया, उन्होंने कहा कि वे अवध की जनता को नवाब के “कुशासन” से आजाद कराने के लिए “कर्त्तव्य से बँधे” हुए हैं इसलिए वे अवध पर कब्ज़ा करने के लिए मजबूर हैं! इस प्रकार कुशासन का आरोप लगाकर अवध राज्य का विलय कर लिया गया|उस समय अवध का नवाब वाजिदअली शाह था|
लॉर्डडलहौजी के कार्यकाल में सेना का मुख्य कार्यालय शिमला लाया गया और इस तरह से शिमला अंग्रेजों की ग्रीष्मकालीन राजधानी बन गई थी|शिमला अंग्रेजों को सुगौली की संधि 1816 ई० के बाद प्राप्त हुई थी|
1853ई० में भारत में पहली रेल लाईन,मुंबई से ठाणे के मध्य बिछाई गई थी|भारत में दूसरी रेल लाईन,कालकत्ता से रानीगंज के मध्य 1854 ई० में बिछाई गई थी|
पोस्ट ऑफिस एक्ट, 1854 ई० में लॉर्डडलहौजी के काल में पारित हुआ था|पोस्ट ऑफिस एक्ट के तहत भारत में डाक टिकट का प्रचलनप्रारम्भ हो गया| इस तरह से अब पूरे भारत में 2 पैसे की दर पर पूरे भारत में कहीं भी चिठ्ठी भेजी जा सकती थी|लॉर्डडलहौजी के समय में ही लोक निर्माण विभाग की स्थापना हुई थी|
Soniya Rajput
April 25, 2022, 2:11 pmPlz sir history k pdf telegram channel pr send kr dijiye pgt history k lie
Kuldeep Rajput
July 11, 2021, 10:28 amSir please also provide us ancient history and mediaeval history