प्लासी का युद्ध -2
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- पिछले अध्याय में बताया गया है कि सिराजुद्दौला का तीन प्रमुख मुद्दों पर अंग्रेजों से मतभेद बढ़ता जा रहा था, जो निम्नलिखित हैं-
- अंग्रेजों के द्वारा नवाब के खिलाफ षड्यंत्रकारियों को बढ़ावा देना|
- नवाब के अनुमति के बिना फोर्ट विलियम के किलेबंदी को और सशक्त करना|
- अंग्रेजों को मुग़ल शासक द्वारा सीमा शुल्क-मुक्त व्यापार का अधिकार|
- उपरोक्त कारणों के आधार पर अंग्रेजों और सिराजुद्दौला के बीच मतभेद बढ़ता गया, अंततः मजबूर होकर नवाब सिराजुद्दौला ने कासिम बाजारस्थित अंग्रेज फैक्टरी पर हमला कर दिया और इस फैक्टरी पर सफलता पूर्वकअधिकार कर लिया| इसके बाद नवाब सिराजुद्दौला नेकलकत्ता स्थित फोर्ट विलियम पर आक्रमण किया और 20 जून,1756 ई०को नवाब ने फोर्ट विलियम पर भीअधिकार कर लिया|
- 20 जून, 1756 ई० को फोर्ट विलियम पर अधिकार करने के पश्चात् नवाब सिराजुद्दौला ने बंदी बनाये गये लगभग 146 कैदियों को जिनमे स्त्रियाँ और उनके साथ बच्चे भी शामिल थे, इन सभी को एक कमरे में कैद करवा दिया|
- अगले दिन 21जून, 1756 ई०की सुबह जब इस कमरे को खोला गया तो केवल 23 व्यक्ति ही जीवित बचे थे|जिन्दा बचे लोगों में से इस घटना की जानकारी देने वालाअंग्रेज अधिकारीहॉलवेलभी था|इस घटना को ही “काल कोठरी त्रासदी” (Black Hole Tragedy)कहा जाता है|
- इस घटना के बाद कलकत्ता पर पुनः अधिकार करने के लिए अंग्रेजों ने मद्रास से राबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में अक्टूबर, 1756 ई० में एक सैन्य टुकड़ी को कलकत्ता भेजा| राबर्ट क्लाइव कलकत्ता पहुँचकर एक बार फिर फोर्ट विलियम पर अधिकार कर लिया|
- नवाब सिराजुद्दौला ने कलकत्ता का नाम बदलकर अलीनगर कर दिया था और मानिकचंद को इसका प्रभारी नियुक्त किया, किन्तु मानिकचंद ने अंग्रेजों से रिश्वत लेकर किला अंग्रेजों को सौंप दिया था|
- राबर्ट क्लाइव द्वारा फ्रांसीसी बस्ती चन्द्रनगर पर विजय कर लेने के कारण बंगाल में अंग्रेजों की स्थिति और अधिक मजबूत हो गई थी|अंततः सिराजुद्दौला को अलीनगर की संधि करने के लिए मजबूर होना पड़ा| अलीनगर की संधि 9 फरवरी,1757 ई० को सम्पन्न हुई थी|
- अलीनगर की संधि के फलस्वरूप नवाब को अंग्रेजों की निम्नलिखित शर्तें मानने के लिए बाध्य होना पड़ा –
- अंग्रेजों को कलकत्ता की किलेबंदी करने की छूट मिल गई|
- अंग्रेजों को सिक्के ढालने का अधिकार प्राप्त हो गया|
- नवाब द्वारा युद्ध में हुए क्षतिपूर्ति का वचन दिया गया|
- नवाब द्वारा भविष्य में शांति बनाये रखने का वादा किया गया|
- संधि के इन शर्तों के बावजूद कालांतर में नवाब के कमजोर सत्ता से प्रभावित होकर अंग्रेजों ने बंगाल की गद्दी पर एक ऐसे नवाब को बैठाने का विचार किया,जिससे आसानी से अपनी स्वार्थ की पूर्ति की जा सके|
- राबर्ट क्लाइव ने नवाब सिराजुद्दौला के विरोधियों के साथ मिलकर एक षड्यंत्ररचना शुरू कर दिया|राबर्ट क्लाइवके इस षड्यंत्र में दरबार के महत्वपूर्ण व्यक्ति भी शामिल थे|इस षड्यंत्र में सिराजुद्दौला के विरोधियों ने राबर्ट क्लाइव का पूरा सहयोग दिया|
- सिराजुद्दौला के प्रमुख विरोधियों में निम्नलिखित व्यक्ति शामिल थे –
- मीर जाफर (सिराजुद्दौला का पूर्व सेनापति )
- रायदुर्लभ (बंगाल का दीवान)
- जगत सेठ (बंगाल का बड़ा व्यापारी )
- मीर जाफर, रायदुर्लभ और जगतसेठ, इन तीनों ने मिलकर अंग्रेजों से सिराजुद्दौला के खिलाफ एक षड्यंत्रकारी समझौता किया|इस समझौते में यह तय किया गया कि सिराजुद्दौला के खिलाफ एक छद्म युद्ध लड़ा जायेगा और इस युद्ध में सिराजुद्दौला को पराजित करके उसके स्थान पर मीर जाफर को बंगाल का नवाब नियुक्त किया जायेगा|
- इस षड्यंत्र को अंजाम देने के लिए 23 जून,1757 ई० को नवाब सिराजुद्दौला एवं अंग्रेजी सेना प्लासी के मैदान में एकत्रित हुई|प्लासी बंगाल के नदिया जिला में गंगा (भागीरथी ) नदी के तट पर स्थित है|
- प्लासी का युद्ध अंग्रेजों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण हो गया था क्योंकि यह अंग्रेजों द्वारा भारत में पूरी तरह से सत्ता पर नियंत्रण करने का पहला अवसर था|
- प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की सेना का नेतृत्व राबर्ट क्लाइव कर रहा था जबकि दूसरी तरफ, सिराजुद्दौला की सेना का नेतृत्व उसके तीन सेनापतियों मीर जाफर, यार लतीफ खां औररायदुर्लभके हाथ में था|
- वास्तव में प्लासी का युद्ध एक छद्म युद्ध था क्योंकि सिराजुद्दौला के तीनों धोखेबाज सेनापतियों ने युद्ध में निष्क्रियता दिखाई और बगैर युद्ध किये मैदान से वापस चले गये|नवाब के सेना का एक वफादार सहयोगी मीर मदान और मोहनलालअंग्रेजों से वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुये|
- 23 जून, 1757 ई० को लड़ा गया प्लासी का युद्ध अंग्रेजों ने युद्ध कौशल से नहीं जीता था|अतः यह युद्ध अंग्रेजों की सैनिक श्रेष्ठता का परिचायक नहीं माना जा सकता है बल्कि यह तोएक षड्यंत्रमात्र था|
- प्लासी के युद्ध के सम्बन्ध में प्रसिद्ध इतिहासकारके०एम० पणिक्कर का कथन है कि, “प्लासी का युद्ध एक समझौता था जिसमे मीर जाफर और बंगाल के अमीर लोगों ने नवाब को अंग्रेजों के हाँथों बेच दिया|”
- प्लासी के युद्ध (1757 ई०) के पश्चात् अंग्रेज अब बंगाल में “नृप निर्माता” (King Maker) की भूमिका में आ गये थे| 30 जून, 1757 ई० को मीर जाफर को बंगाल का नया नवाब बनाया गया|
- प्लासी के युद्ध के पश्चात् भारत के सबसे समृद्ध प्रान्त बंगाल को अंग्रेजों के द्वारा खूब लूटा गया|चूँकियुद्ध के पश्चात् बंगाल का नवाब अंग्रेजों के कृपापात्र मीर जाफर को बना दिया गया था, अतः मीर जाफर अंग्रेजों द्वारा किये गये किसी भी गतिविधियों में हस्तक्षेप नही करता था|मीर जाफर बंगाल पर मात्र एक “कठपुतली शासक” के रूप में कार्य कर रहा था|
- इतिहासकार के० एम० पणिक्कर ने बंगाल में 1765ई० से लेकर 1772 ई० तक के काल को“डाकू राज्य” की संज्ञा दी है|
- बंगाल का नवाब बनने की ख़ुशी में मीर जाफर ने अंग्रेजों को 24 परगना की जमींदारी भेंट के रूप में दिया|इसके अतिरिक्त मीर जाफर ने राबर्ट क्लाइव को युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में37,70,833 पौण्ड दिया तथा 20 लाख रुपये की व्यक्तिगत भेंट भी प्रदान किया|