उपनिवेशवाद के चरण
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- भारत में उपनिवेशवाद को तीन चरणों में विभाजित किया है|ये चरण निम्नलिखित हैं-
- वाणिज्यिक पूंजीवाद का चरण (1757 से 1813 तक का चरण)
- औद्योगिक पूंजीवाद का चरण (1813 से 1857 तक का चरण)
- वित्तीय पूंजीवाद का चरण (1858 से 1947 तक का चरण)
औद्योगिक पूंजीवाद का चरण
(1813 ई० से 1857 ई० तक)
- इस चरण की शुरुआत 1813ई० में चार्टर एक्ट के द्वारा भारत के साथ व्यापार पर कंपनी के एकाधिकार को समाप्त करने के साथ शुरू हुआ|
- 1813 ई०के चार्टर एक्ट के पूर्व भारत के व्यापार पर कंपनी का एकाधिकार था|कंपनी के अलावा यूरोप का अन्य कोई व्यापारी भारत के साथ व्यापार नहीं कर सकता था|इसी एकाधिकार की स्थापना के लिए कंपनी ने फ्रांसीसी, पुर्तगाली और डचों को परास्त करके या तो उन्हें भारत से बाहर कर दिया और जो यहाँ रह गये, उन्हें बहुत ही सीमित क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर किया गया|
- 1813 ई० के चार्टर एक्ट के द्वारा ब्रिटिश संसद में एक कानून पारित किया गया,इसे ही 1813ई० का चार्टर एक्ट कहा जाता है|चार्टर एक्ट प्रत्येक 20 वर्षों के अंतराल पर जारी किया जाता था|इसके पूर्व 1793 ई० का चार्टर एक्ट जारी किया था|
- चार्टर एक पारित करने का उद्देश्य ब्रटिश शासन के द्वारा अलग-अलग कानून के माध्यम सेकंपनी पर नियंत्रण स्थापित करना था|1813 ई० में पारित चार्टर एक्ट के द्वारा ब्रिटिश संसद के माध्यम से कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया|
- 1813 ई० में पारित चार्टर एक्ट के द्वाराअब कंपनी का यह एकाधिकार केवल दो क्षेत्रों तक ही सिमित रह गया –
- चाय के व्यापार पर
- चीन के साथ व्यापार पर
- ब्रिटेन में औद्योगिक कारखानों में विशाल मात्रा में उत्पादन प्राम्भ हो गया| संसाधनों के तकनीकि खोजों के कारण बड़े पैमाने पर हो रहे उत्पादन के कारण ब्रिटिश कंपनियों के सामने अब दो तरह की समस्याएं उत्पन्न हो रही थीं –
- उत्पादित वस्तुओं का खपत कैसे की जाये|
- उत्पादन के बढ़ने के कारण कच्चे माल की आपूर्ति में कैसे वृद्धि की जाये|
- उपरोक्त कारणों से 1813 ई० के चार्टर एक्ट द्वारा सबसे पहले भारत के व्यापार पर कंपनी के एकाधिकार को समाप्त कर दिया गया और भारतीय बाजारों को सभी व्यापारियों के लिए खोल दिया गया|अब भारत को ब्रिटेन के कारखानों में निर्मित वस्तुओं के बाजार के लिए विकसित किया गया|साथ ही भारत को ब्रिटिश उद्योगों के लिए कच्चे माल के आपूर्ति के श्रोतों के रूप में भी विकसित किया गया|
- 1813 ई० को भारतीय बाजारों को ब्रिटिश कारखानों में निर्मित सस्ते कपड़ों से पाट दिया गया|कारखानों में बनी वस्तुएँ कुशल और सस्ती होती हैं|भारत में हाँथ से बने कपड़े प्रतियोगिता में ब्रिटिश कपड़ों के आगे टिक नहीं सके| इस तरह भारतीय कपड़ा और हस्तशिल्प उद्योगों को बड़े पैमाने पर धक्का पंहुचा|अब भारत में बेरोजगारी बढ़ने लगी| यही बढ़ती हुई बेरोजगारी 1857 ई० की क्रांति की पृष्ठभूमि बनी|
- 1813 ई० के भारत में खाद्यान्नों के उत्पादन को हतोत्साहित किया गया क्योंकि अगर खाद्यान्नों का उत्पादन होगा तब कारखानों के लिए कच्चे माल का उत्पादन कैसे किया जायेगा?कारखानों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति के लिए खाद्यान्नोंके उत्पादन को हतोत्साहित किया गया और खेतों में नगदी फसलों जैसे- कपास, नील, चाय, रबड़ आदि के उत्पादन को बढ़ावा दिया गया|
- भारत में इन नगदी फसलों के उत्पादन करने के कारण भारत में खाद्यान्न का उत्पादन गिरने लगा|खाद्यान्नों के गिरावट के कारण भारतीय बाजारों में खाद्यान्नोंका मूल्य बढ़ने लगा, साथ ही भारत में भुखमरी भी बढती गई|भारत में कच्चे माल के उत्पादन में बढ़ोतरी हुई|इसके साथ ही सूती कपड़ों के आयात में वृद्धि हुई|भारत में कच्चे माल का निर्यात बढ़ने के साथ ही भारत में विदेशी कपड़ों का आयात भी बढ़ता गया|
- भारतीय खेतों से पैदा किया गया कच्चा माल बंदरगाहों तक भेजा जाता था और बंदरगाहों के माध्यम से इन कच्चे माल को लादकर ब्रिटेन भेजा जाता था|भारत में उत्पादित कच्चे माल को बंदरगाहों तक तेजी से भेजने के लिए अब यातायात के साधन को विकसित किये जाने कीआवश्यकता महसूस होने लगी| भारतीय खेतों से कच्चे माल को ब्रिटेन के आतंरिक बाजारों में पहुँचने के लिए 1853ई० में भारत में रेलवे का विकास किया जाने लगा गया|
- भारत में रेलवे के विकास के मुख्यतः तीन उद्देश्य थे –
- भारत से कच्चे माल को बंदरगाहों तक पहुँचाना|
- बंदरगाहों से इंग्लैंड के बने बनाये माल को भारतके आतंरिक बाजारों तक पहुँचाना|
- किसी भी विद्रोह की स्थिति में देश के किसी भी भाग में सैनिकों का तीव्र आवागमन करना|
भारत में वित्तीय पूंजीवाद का चरण
(1857ई० से 1947 ई० तक)
- ब्रिटेन में औद्योगिक उत्पादन के बढ़ने और साथ ही भारतीय बाजारों में कंपनी के शोषण से ब्रिटेन में विशाल पूंजी इकठ्ठा हो गई|ब्रिटेन के कारखानों में उत्पादन बढ़ने के साथ ही इंग्लैंड के कारखानों में काम कर रहे मजदूरों में चेतना भी बढ़ती गई|अब इंग्लैंड में मजदूर वर्ग अपने लाभ के लिए संगठित होता गया|धीरे-धीरे ब्रिटिशपूंजीपती वर्ग आशंकित होने लगा, इसलिए उद्योगपतियों ने सोचा कि अब ब्रिटिश पूंजी को ब्रिटेन में निवेश करना लाभकारी नहीं रह गया है इसलिए अब उन्होंने ब्रिटिश पूंजी को भारत में निवेश करने की योजना बनाई|
- भारत में ब्रिटिश सरकार को रेलवे का विकास करने के लिए पूंजी की जरुरत थी इसलिए ब्रिटिश पूंजीपतियों ने भारत को पूंजी सार्वजनिक ऋण के माध्यम से दिया| इस सार्वजनिक ऋण पर न केवल ब्याज देना था बल्कि भारत सरकार को उन्हें रेलवे से होने वाले लाभ का भी एक हिस्सा देना था|
- 1939 ई० के वर्ष तक आते-आते भारत सरकार के ऊपर सार्वजनिक ऋण का भार 88 करोंड़ पौण्ड तक पहुँच गई थी|ब्रिटिश पूंजी का सबसे बड़ा निवेश भारत में रेलवे के विकास में किया गया|भारत में रेलवे के बाद ब्रिटिश पूंजी का दूसरा सबसे बड़ा निवेश चाय, काफी, रबड़ और नील के उत्पादन में किया गया|यही कारण था कि वित्तीय पूंजीवाद के दौर में भारत में बड़े पैमाने पर रबड़, चाय, कॉफी और नील के बड़े-बड़े बागानों का विकास किया गया|