आंग्ल-मैसूर युद्ध -2
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- टीपूसुल्तान भारतीय इतिहासमें एक महत्वपूर्ण शासक के रूप में जाना जाता है|1784 ई० के पिट्स इण्डिया एक्ट के तहत 1786 ई० में लॉर्डकार्नवालिस भारत का गवर्नरजनरल बना| 1786 ई०से लेकर 1796 ई० तक लॉर्डकार्नवालिस भारत के गवर्नर-जनरल के पद पर बना रहा|
- द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के बाद मैसूर के शासक हैदर अली की मृत्यु हो गई| इसके पश्चात हैदर अली का पुत्र टीपू सुल्तान मैसूर का शासक बना|
- हैदर अली एक अनपढ़ व्यक्ति था, इसलिए उसने पढ़ने-लिखने के लिए एक ब्राह्मण शिक्षक खांडेराव की नियुक्ति की थी|
- 1565 ई० के तालीकोटा युद्ध ने विजय नगर साम्राज्य को नष्ट कर दिया|विजय नगर साम्राज्य के ध्वंसावशेषों पर कुछ नए स्वतंत्र राज्यों का उदय हुआ, जिनमे एक मैसूर राज्य भी था|
- मैसूर राज्य पर पहले वाड्यार वंश का शासन था|वाड्यारवंश एक हिन्दू वंश था, लेकिन वाड्यार वंश के बाद सत्ता हैदर अली के पास आ जाती है|हैदर अली एक मुसलमान शासक था|
- टीपू सुल्तान अपने पिता की तरह अनपढ़ नही था बल्कि वह एक पढ़ा लिखा व्यक्ति था|टीपू सुल्तान को अरबी, फारसी, उर्दू के साथ-साथ कन्नड़ भाषा का भी ज्ञान था|
- वाड्यार वंश के नन्जराज एवं देवराज के समय में हैदर अली एक सैनिक के रूप में भर्ती हुआ था|कालांतर में हैदर अली शक्तिशाली होता गया और उसने नन्जराज के हाँथो से मैसूर की सत्ता छीन ली थी|
- हैदर अली ने कोई शाही उपाधि धारण नहीं कीथी जबकिटीपू सुल्तान ने 1787ई० में बादशाह की उपाधि धारण की थी|बादशाह बनने के बाद टीपू ने अपने नाम के सिक्के चलवाए और उसने महीने और वर्षों के नाम अरबी भाषा में लिखवायाथा|टीपू सुल्तान के सिक्कों पर हिन्दू देवी-देवताओं की आकृतियाँमिलती हैं|
- टीपू सुल्तान एक मुसलमान शासक होते हुए भी धार्मिक दृष्टि से कट्टर नही था, वह दूसरे धर्मों को भी आदर देता था|1791 ई० में मराठा घुड़सवारों के द्वारा श्रृंगेरी के शारदा मंदिर को लूट लिया गया, मंदिर के पुजारी के आग्रह पर टीपू सुल्तान ने मंदिर का मरम्मत करवाया तथा देवी की मूर्ति स्थापना के लिए धन भी दान किया|
- टीपू ऐसा प्रथम भारतीय शासक था जिसने अपने सैन्य शक्ति को यूरोपीय पद्धति के अनुरूप संगठित किया|टीपू ने अपनी शासन व्यवस्था में पाश्चात्यप्रशासनिक व्यवस्था का मिश्रण किया|
- टीपू ऐसा पहला व्यक्ति था जिसने युद्ध मेंरॉकेट का इस्तेमाल किया था|टीपू सुल्तान के बारे में थॉमस मुनरो का कथन है कि, “टीपू रीति से चलने वाली एक अशांत आत्मा है|”
- टीपू सुल्तान 1789 ई०मेंहुए फ़्रांसीसीक्रांति से बहुत अधिक प्रभावित था|फ़्रांसीसी क्रांति ने मुख्य रूप से स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व पर बल दिया था|मध्यकालीन भारत में इन बातों का कोई महत्व नही था|फ्रांसीसियों की माहे बस्ती मैसूर राज्य के अंतर्गत शामिल थी|
- फ्रांसीसियों ने टीपू के सामने प्रस्ताव रखा की आप जैकोबिन क्लब के सदस्य बन जाइये|1789 ई० में फ़्रांसीसी क्रांति के समय क्रांतिकारियों ने एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की थी जिससे क्रांति के आदर्शों को क्रियान्वित किया जा सके|इस क्रांतिकारी संगठन का ही नाम जैकोबिन क्लब था|सैनिकों के कहने पर टीपू ने श्रीरंगपट्टनम में जैकोबिन क्लब की स्थापना की और स्वयं उसका सदस्य बना|
- टीपू ने अपनी राजधानी श्रीरंगपट्टम में फ़्रांसऔर मैसूर के बीच मित्रता के प्रतीक के रूप में स्वतंत्रता-वृक्ष लगवाया था|टीपू सुल्तान फ्रांसीसी क्रांति से अत्यधिक प्रभावित था, वह स्वयं को नागरिक टीपू कहने लगा था|नागरिक टीपू की अवधारण भी फ़्रांस से ही आई थी|
- टीपू ने अंग्रेजों के खिलाफ विदेशी राज्यों से मदद मांगने का भी प्रयास किया था|विदेशी व्यापार तथा अपने समकालीन विदेशी राजाओं से मैत्री संबंध बनाये रखने के लिए टीपू ने फ़्रांस, अरब, कुस्तुन्तुनिया, काबुल तथा मॉरीसस में अपने दूत मंडल भेजे थे|उसने बन्दरगाह वाले नगरों में व्यापारिक संस्थाएंस्थापित करके रूस एवं अरब के साथ व्यापार बढ़ाने की कोशिश की|
- टीपू की अपने व्यक्तिगत धर्म के मामले मेंविचारधारा रुढ़िवादी थी,किन्तु अन्य धर्मो के प्रति उसने सहिष्णुता की नीति का अनुसरण किया| एक मुस्लिम शासक होते हुए भी उसने कभी हिन्दू पूजा विधान में हस्तक्षेप करने का प्रयास नहीं किया था|टीपू अपने राज्य में हिन्दुओं को प्रशासनिक पदों पर स्थान दिया था|
- भूराजस्व की वसूली करने के लिए जमींदारी व्यवस्था का प्रचलन था|टीपू ने पहले से चली आ रही इस व्यवस्था में संशोधन किया|टीपू ने भूराजस्व की वसूली करने के लिए किसानों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध स्थापित किया| टीपू ने भूराजस्व व्यवस्था को समाप्त करके रैय्यतों से सीधा सम्पर्क स्थापित किया तथापॉलिगारों के पैतृक अधिकारों को जब्त कर लिया|
Note- दक्षिण भारत के जमींदारों कोपॉलिगार कहा जाता था|
- साम्राज्यवादी लेखको नेटीपू के द्वारा किये गये इन कार्यों को देखते हुए उसे “सीधा-साधा दैत्य”(Monster Pure and Simple)कहा है|
तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790 ई०-1792 ई०)
- तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1790 ई० से लेकर 1792 ई० के मध्य अंग्रेजों और टीपू के मध्य हुआ था| इस युद्ध के प्रारम्भ होने का यह कारण था किलॉर्ड कार्नवालिसने टीपू पर आरोप लगाया कि टीपू ने फ्रांसीसियों से गुप्त संधि कर ली है|
- कार्नवालिस ने मराठों और हैदराबाद के निजाम को टीपू सुल्तान के खिलाफ भड़काया और उन्हें अपनी ओर मिला लिया| मराठों और निजाम के साथ मिलकर कार्नवालिस ने 1790 ई०में मैसूर राज्य पर आक्रमण कर दिया|
- 1792 ई० में गवर्नर-जनरल लॉर्ड कार्नवालिस,हैदराबाद का निजाम और मराठों की संयुक्त सेना ने मिलकर श्रीरंगपट्टम के किले पर आक्रमण कर दिया और टीपू सुल्तान को श्रीरंगपट्टम की संधि के लिए मजबूर किया| श्रीरंगपट्टम मैसूर की राजधानी थी|
- श्रीरंगपट्टमकी संधि के प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं –
- इस संधि के शर्तों के अनुसार टीपू को अपना आधा राज्य अंग्रेजों और उसके मित्रों (सहयोगियों)को देना पड़ा|
- टीपू ने इस युद्ध की क्षतिपूर्ति के रूप में अंग्रेजों को 3 करोड़ रूपये दिए|हर्जाना न देने तक अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान के दो बेटों को बंधक बनाकर रखा|
- कार्नवालिस ने श्रीरंगपट्टम की संधि के बाद कहा था कि, “हमने अपने मित्रों को शक्तिशाली बनाये बिना ही शत्रु को पंगु कर दिया है|”
चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई०)
- चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध, 1799 ई० में हुआ था|1798 ई०में लॉर्ड वेलेजली भारत में गवर्नर-जनरल बनकर आया और 1805 ई० तक उसने भारत पर शासन किया|
- लॉर्ड वेलेजली अत्यधिक साम्राज्यवादी था|वह चाहता था कि अधिक से अधिक भारतीय राज्यों को कंपनी के अधीन कर लिया जाये|इस कार्य को पूर्ण करने के लिए वेलेजली ने सहायक संधि के रूप में एक व्यूह की रचना की|
- वेलेजली, सहायक संधि का प्रस्ताव थोपने का कार्य कमजोर भारतीय राज्यों से प्रारम्भ किया|वह पहले कमजोर पड़े भारतीय राज्यों का चुनाव करता था और उनके सामने सहायता का प्रस्ताव रखता था|
- लॉर्ड वेलेजली ने सहायता संधि के प्रस्ताव के अंतर्गत भारतीय शासकों के सम्मुख निम्नलिखित बिदुओं कोरखा-
- राज्यों की सुरक्षा की जिम्मेदारी कंपनी की होगी|
- राज्यों की सुरक्षा के लिए कंपनी की तरफ से सेना रखी जाएगी और इस सेना केरख-रखाव की जिम्मेदारी संबंधित राज्य की ही होगी|
- राज्य की आन्तरिक और विदेश नीति की जिम्मेदारी कंपनी की होगी|
- लॉर्ड वेलेजली ने 1799 ई० में टीपू सुल्तान के समक्ष अपनी सहायता प्रस्ताव प्रस्तुत किया|टीपू ने इस सहायक संधि को मानने से इंकार कर दिया जिसके परिणामस्वरूपवेलेजली ने मैसूर पर आक्रमण कर दिया|
- इस युद्ध के समय टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों का सामना करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग लेने का भी प्रयास किया था|टीपू इस सम्बन्ध में नेपोलियन से भी पत्र व्यवहार किया था|
- 4 मई, 1799 ई० को टीपू इस युद्ध में अंग्रेजों की संयुक्त सेना से वीरता पूर्वक लड़ता हुआ श्रीरंगपट्टम के किले के द्वार पर मारा गया|टीपू सुल्तान केपरिवार को वेल्लोर में कैद कर दिया गया|अंग्रेजों ने मैसूर के अधिकतर भाग को अंग्रेजी साम्राज्य में मिला लिया|मैसूर के शेष बचे भाग पर वाड्यार वंश के एक दो वर्षीय बालक कृष्णराज द्वितीय को सत्ता सौंपकर उसे अपने संरक्षण में ले लिया|