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          भारत में मुख्य रूप से पाँच प्रकार के वन पाये जाते हैं

(i)     उष्णकटिबंधीय वर्षा वन

(ii)    उष्णकटिबंधीय मानसूनी वन अथवा आर्द्र पर्णपाती वन

(iii)   कंटीले वन तथा झाड़ियाँअथवा उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन अथवा       आर्द्र-उष्णकटिबंधीय वन

(iv)   पर्वतीय वन

(v)    ज्वारीय अथवा मैंग्रोव वन

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उष्णकटिबंधीय वर्षा वन

  • जिन क्षेत्रों में तापमान अधिक पाया जाता है और वार्षिक वर्षा200 सेमी० से अधिक होती है, उन क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय वन पाये जाते हैं|
  • वर्षा वनों में वर्ष के अधिकांश दिनों में वर्षा होती है, परिणामस्वरूप वृक्ष अपने पत्तियों को नहीं गिराते हैं, जिससे वन हरे-भरे होते हैं| वर्षभर हरे-भरे होने के कारण वर्षा वन को सदाबहार वन कहते हैं |
  • सदाबहार वनों के वृक्षों की विशेषता है कि यहाँ के वृक्ष लम्बेहोते हैं | आबनूस, एबोनी, महोगनी, रोजवुड, नारियल, ताड़, बाँस, रबर और सिनकोना उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों केप्रमुख वृक्ष हैं |
  • भारत का सर्वाधिक रबर उत्पादक राज्य केरल है |
  • भारत का रबर उत्पादन में विश्व में चौथा स्थान है |
  • विश्व में पहला रबर उत्पादक देश थाईलैंड है |
  • उत्तरी सह्याद्रि में वर्षा वनों को सोला नामसे जानते हैं |

          वर्षा वन भारत में मुख्य रूप से चार स्थानोंपर पाये जाते हैं –

(a)    पश्चिमी घाट का पश्चिमी ढाल और पश्चिमी तटीय प्रदेश |

(b)    हिमालय का तराई क्षेत्र

(c)    अरूणाचल प्रदेश को छोड़कर पूर्वोत्तर भारत अर्थात् शिलांग पठार और आस-पासके क्षेत्र

(d)    अंडमान-निकोबार द्वीप समूह

          उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों की विशेषताएँ :-

(i)     लम्बे वृक्ष

(ii)    अत्यंत सघन वन

(iii)   जीवों तथा वनस्पतियों की विविधता

(iv)   कठोर लकड़ी के भण्डार

(v)    मानवीय प्रयोग कम

उष्णकटिबंधीय मानसूनी वन अथवा पतझड़ वाले वन

  • मानसूनी वन देश के भीतरी भागों में पाये जाते हैं, जहाँ मानसूनी पवनों द्वारा मौसमी वर्षा होती है |
  • उष्णकटिबंधीय मानसूनी वन उत्तर प्रदेश से लेकर तमिलनाडु तक तथा मध्यप्रदेश से झारखण्ड तक पाये जाते हैं | इन क्षेत्रों में 100-200 सेमी० के बीच वार्षिक वर्षा होती है |
  • देश के सर्वाधिक क्षेत्रफल पर मानसूनी वन पाये जाते हैं, चूँकि मानसूनी वनों के वृक्ष शीत ऋतु के बाद ग्रीष्म ऋतु के आगमन के पहले अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं, इसलिए इन्हें पतझड़ वाले वनया पर्णपाती वन भी कहते हैं |
  • मानसूनी वनों में पाये जाने वाले वृक्ष इस प्रकार हैं -शीशम, शाल, सागौन, साखू, आम, आंवला और चन्दन |चन्दन मुख्य रूप से कर्नाटक तथा नीलगिरि के पर्वत में पाये जाते हैं |

          मानसूनी वन मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में पाये जाते हैं –

(a)    उत्तर भारत के मैदान में मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और बिहार में

(b)    मध्य प्रदेश से लेकर तमिलनाडु तक पूरे पठारी भारत में

Note :-      वृष्टि छाया प्रदेश को छोड़कर पूरे पठारी भारत में मानसूनी वन पाये जाते हैं |

          उष्णकटिबंधीय मानसूनी वनों की प्रमुख विशेषताएँ :-

(i)     मुलायम लकड़ी के वृक्ष पाये जाते है |

(ii)    इनकी आर्थिक उपयोगिता ज्यादा है | उदाहरण के लिए – शीशम, शाल,          सागौन, साखू और चन्दन |

कंटीले वन तथा झाड़ियाँ

  • भारत के जिन क्षेत्रों में 70 सेमी० से भी कम वार्षिक वर्षा होती है, वहां कंटीले वन तथा झाड़ियाँ पाई जाती हैं | उदाहरण के लिए – पश्चिमी भारतऔरवृष्टि छाया प्रदेश |
  • यहाँ वर्षा कम होने के कारण कंटीले वन पाये जाते हैं, अर्थात् इनकी पत्तियाँ कांटेदार होती है, जिससे वाष्पीकरण कम हो तथा वृक्ष जीवित रह सकें | यहाँ पर प्रमुख रूप से बबूल, खजूर, नागफनी, खेजडा, बेल और करीम आदि के वृक्ष पाये जाते हैं |

ये वन मुख्य रूप से दो क्षेत्रों में पाये जाते हैं –

(a)    पश्चिमी भारत में (पंजाब, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर-प्रदेश तथा गुजरात)

(b)    वृष्टि छाया प्रदेश – (मध्यप्रदेश के इन्दौर से लेकर आंध्र प्रदेश के कन्नूर    जिले तक एक अर्द्ध चन्द्राकार आकृति में कंटीली झाड़ियाँ पायी जाती हैं |)

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